Wednesday, April 5, 2017

Skand Shasthi Vrat

2 अप्रैल, 2017, रविवार

विक्रमी संवत 2074 शक संवत 1939 उत्तरायणे भास्करे, ऋतु बसन्त, मास चैत्र, पक्ष शुक्ल, तिथि षष्ठी 15.16 तक पश्चात सप्तमी नक्षत्र मृगशिरा 25.13 पश्चात आद्रा, योग सौम्य 21.71, करण तैतिल 22.35, सूर्योदय प्रात: 6.14 तथा सूर्यास्त सायं 18.35 चन्द्रमा मिथुन राशि में 14.03, राहुकाल 16.30 से 18.00 तक। दिशाशूल पश्चिम में।

आज व कल विशेष-

1. आज स्कन्द षष्ठी व्रत-पूजा।

2. कल जैन धर्मावलंबियों की नवपद पूजा शुरू।

आज करें स्कन्द षष्ठी का व्रत
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ब्रह्म पुराण में  बताया गया है कि स्कन्द की उत्पत्ति चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को हुई थी।  देवों के द्वारा सेनानायक बनाये गये थे तथा तारकासुर का वध किया था, अत: उनकी पूजा, दीपों, वस्त्रों, अलंकरणों, मुर्गों (खिलौनों के रूप में) आदि से की जानी चाहिए अथवा उनकी पूजा बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सभी शुक्ल षष्ठियों पर करनी चाहिए। तिथितत्त्व  ने चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को स्कन्दषष्ठी कहा है।

कब करें यह व्रत?

यह व्रत प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जा सकता है। वर्ष के किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह व्रत आरंभ किया जा सकता है। वैसे चैत्र अथवा आश्विन मास की षष्ठी को इस व्रत को आरंभ करने का प्रचलन अधिक है।

आवश्यक सामग्री

भगवान शालिग्राम जी का विग्रह, कार्तिकेय का चित्र, तुलसी का पौधा (गमले में लगा हुआ), तांबे का लोटा, नारियल, पूजा की सामग्री, जैसे- कुंकुम, अक्षत, हल्दी, चंदन अबीर, गुलाल, दीपक, घी, इत्र, पुष्प, दूध, जल, मौसमी फल, मेवा, मौली आसन इत्यादि। यह व्रत विधिपूर्वक करने से सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है। संतान को किसी प्रकार का कष्ट या रोग हो तो यह व्रत संतान को इन सबसे बचाता है।

स्कंद षष्ठी का पूजन

स्कंद षष्ठी के अवसर पर शिव-पार्वती को पूजा जाता है। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इसमें स्कंद देव (कार्तिकेय) की स्थापना करके पूजा की जाती है तथा अखंड दीपक जलाए जाते हैं। भक्तों द्वारा स्कंद षष्ठी महात्म्य का नित्य पाठ किया जाता है। भगवान को स्नान कराया जाता है, नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और उनकी पूजा की जाती है। इस दिन भगवान को भोग लगाते हैं, विशेष कार्य की सिद्धि के लिए इस समय कि गई पूजा-अर्चना विशेष फलदायी होती है। इसमें साधक तंत्र साधना भी करते हैं, इसमें मांस, शराब, प्याज, लहसुन का त्याग करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का संयम रखना आवश्यक होता है।

स्कन्द षष्ठी की कथा
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भगवान कार्तिकेय की जन्म कथा के विषय में पुराणों में ज्ञात होता है कि जब दैत्यों का अत्याचार और आतंक फैल जाता है और देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ता है। तब सभी देवता भगवान ब्रह्मा के पास पहुंचते हैं और अपनी रक्षार्थ उनसे प्रार्थना करते हैं। ब्रह्मा उनके दु:ख को जानकर उनसे कहते हैं कि तारक का अंत भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव है, परंतु सती के अंत के पश्चात भगवान शिव गहन साधना में लीन हुए रहते हैं। इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं, तब भगवान शिव उनकी पुकार सुनकर पार्वती से विवाह करते हैं। शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिव जी और पार्वती का विवाह हो जाता है। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है और कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं।

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