क्यों मनाते हैं रामनवमी
---------------------------------
माना जाता है कि भगवान श्री राम का जन्म चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी को अयोध्या में हुआ। अगस्त्यसंहिता के अनुसार श्री राम का जन्म दिन के 12 बजे हुआ था इस समय पुनर्वसु नक्षत्र व कर्क लग्न था। इस समय ग्रहों की दशा के अनुसार भगवान राम ने मेष राशि में जन्म लिया जिस पर सूर्य एवं अन्य पांच ग्रहों की शुभ दृष्टि पड़ रही थी। माता कौशल्या की कोख से भगवान विष्णु के मानव अवतार लेने पर इस जन्मोत्सव का आनंद देवताओं, ऋषियों, किन्नरों, चारणों सहित अयोध्या नगरी की समस्त जनता ले रही थी। इतना ही नहीं यह भी माना जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना भी रामनवमी के दिन ही शुरू की थी। राम जन्मभूमि अयोध्या में तो राम जन्म का यह उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन यहां मेलों का आयोजन भी होता है।
रामनवमी व्रत की कथा
---------------------------------
एक बार की बात है जब राम, सीता और लक्ष्मण वनवास पर थे। वन में चलते-चलते भगवान राम ने थोड़ा विश्राम करने का विचार किया। वहीं पास में एक बुढिया रहती थी, भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता बुढ़िया के पास पंहुच गये। बुढ़िया उस समय सूत कात रही थी, बुढिया ने उनकी आवभगत की और उन्हें स्नान ध्यान करवा भोजन करने का आग्रह किया इस पर भगवान राम ने कहा माई मेरा हंस भी भूखा है पहले इसके लिये मोती ला दो ताकि फिर मैं भी भोजन कर सकूं। बुढ़िया मुश्किल में पड़ गई लेकिन घर आये मेहमानों का निरादर भी नहीं कर सकती थी। वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पास गई और उनसे उधार में मोती देने की कही राजा को मालूम था कि बुढिया की हैसियत नहीं है लौटाने की लेकिन फिर भी उसने तरस खाकर बुढिया को मोती दे दिया। अब बुढ़िया ने वो मोती हंस को खिला दिया जिसके बाद भगवान श्री राम ने भी भोजन किया। जाते जाते भगवान राम बुढिया के आंगन में मोतियों का एक पेड़ लगा गये। कुछ समय बाद पेड़ बड़ा हुआ मोती लगने लगे बुढ़िया को इसकी सुध नहीं थी। जो भी मोती गिरते पड़ोसी उठाकर ले जाते। एक दिन बुढिया पेड़ के नीचे बैठी सूत कात रही थी की पेड़ से मोती गिरने लगे बुढ़िया उन्हें समेटकर राजा के पास ले गई। राजा हैरान कि बुढ़िया के पास इतने मोती कहां से आये बुढ़िया ने बता दिया की उसके आंगन में पेड़ है अब राजा ने वह पेड़ ही अपने आंगन में मंगवा लिया लेकिन भगवान की माया अब पेड़ पर कांटे उगने लगे एक दिन एक कांटा रानी के पैर में चुभा तो पीड़ा व पेड़ दोनों राजा से सहन न हो सके उसने तुरंत पेड़ को बुढ़िया के आंगन में ही लगवा दिया और पेड़ पर प्रभु की लीला से फिर से मोती लगने लगे जिन्हें बुढ़िया प्रभु के प्रसाद रूप में बांटने लगी।
रामनवमी व्रत व पूजा विधि
--------------------------------------
हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों के रामनवमी बहुत ही शुभ दिन होता है। माना जाता है कि सभी प्रकार के मांगलिक कार्य इस दिन बिना मुहूर्त विचार किये भी संपन्न किये जा सकते हैं। रामनवमी पर पारिवारिक सुख शांति और समृद्धि के लिये व्रत भी रखा जाता है। रामनवमी पर पूजा के लिये पूजा सामग्री में रोली, ऐपन, चावल, स्वच्छ जल, फूल, घंटी, शंख आदि लिया जा सकता है। भगवान राम और माता सीता व लक्ष्मण की मूर्तियों पर जल, रोली और ऐपन अर्पित करें तत्पश्चात मुट्ठी भरकर चावल चढायें। फिर भगवान राम की आरती, रामचालीसा या राम स्त्रोतम का पाठ करें। आरती के बाद पवित्र जल को आरती में सम्मिलत सभी जनों पर छिड़कें। अपनी आर्थिक क्षमता व श्रद्धानुसार दान-पुण्य भी अवश्य करना चाहिये। रामनवमी के दिन उपवास रखने वाले व्यक्ति को सुबह जल्दी उठकर घर की साफ सफाई कर स्नानादि के बाद व्रत का संकल्प करना चाहिये। जिस समय व्रत कथा सुनें उस समय हाथ में गेहूं या बाजरा आदि अन्न के दाने रखें। घर, पूजाघर या मंदिर को ध्वजा, पताका, बंदनवार आदि से सजाया भी जा सकता है।
No comments:
Post a Comment