Thursday, December 11, 2025

श्री काल भैरव अष्टकम संस्कृत एवं हिंदी अर्थ सहित Kaal Bhairav Ashtakam

||काल भैरव अष्टक ||

श्री कालभैरव अष्टक भगवान काल भैरव को समर्पित है। आद्य शंकराचार्य जी द्वारा रचित यह दिव्य स्तोत्र भगवान कालभैरव के विकराल और भयंकर स्वरूप की स्तुति करता है। भगवान काल भैरव का रूप उग्र और प्रचंड है लेकिन वे बहुत ही भोले और सरल स्वभाव के हैं, वे अपने भक्तो से प्रेम करते हैं एवं अपने भक्तों की रक्षा के लिए वे सदैव तत्पर रहते हैं।।

।श्री गणेशाय नमः।

ॐ देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं

व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम

नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥ १॥


जिनके पवित्र चरर्णों की सेवा देवराज इंद्र भगवान सदा करते हैं, जिन्होंने शिरोभूषण के रुप में चंद्र और सांप (सर्प) को धारण किया है, जो दिगंबर जी के वेश में हैं और नारद भगवान आदि योगिगों का समूह जिनकी पूजा, वंदना करते हैं, उन काशी के नाथ कालभैरव जी को मैं भजता हूं।


भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं

नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम ।

कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं

काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥२॥


जो करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश देने वाले हैं, परमेश्वर भवसागर से जो तारने वाले हैं, जिनका कंठ नीला है और सांसारिक समृद्धियां प्रदान करते हैं और जिनके नेत्र तीन हैं। जो काल के भी काल हैं और जिनका त्रिशूल तीन लोकों को धारण करता है और जो अविनाशी हैं उस काशी के स्वामी कालभैरव को मैं भजता हूं।


शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं

श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम ।

भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं

काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥३॥


जो अपने दोनों हाथों में त्रिशूल, फन्दा, कुल्हाड़ी और दंड लिया करते हैं, जो सृष्टि के सृजन के कारण हैं और सांवले रंग के हैं और आदिदेव सांसारिक रोगों से परे हैं, जिन्हें विचित्र तांडव पसंद है उस काशी के नाथ कालभैरव को मैं भजता हूं।


भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं

भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम ।

विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥४॥


जो मुक्ति प्रदान करते हैं, शुभ, आनंद दायक रुप धारण करते हैं, जो भक्तों से सदा प्रेम करते हैं और तीने लोकों में स्थित हैं। जो अपनी कमर पर घंटियां धारण करते हैं उन काशी के भगवान कालभैरव को मैं भजता हूं।


धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं

कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम ।

स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५॥


जो धर्म की रक्षा करते हैं और अधर्म के मार्गों का नाश करते हैं, कर्मों के जाल से मुक्त करते हैं। जो स्वर्ण रंग के सांप से सुशोभित हैं उस काशी के नाथ कालभैरव को मैं भजता हूं।


रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं

नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम ।

मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥६॥


जिनके दोनों पैर रत्न जड़ित हैं, जो इष्ट देवता और परम पवित्र हैं। जो अपने दांतों से मौत का भय दूर करते हैं उन काशी के नाथ कालभैरव को मैं भजता हूं।


अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं

दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम ।

अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकन्धरं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥७॥


जिनकी हंसी की ध्वनि से कमल से उत्पन्न ब्रह्मा की सभी कृतियों की गति रुक जाती है, जिसकी दृष्टि पड़ने से पापों का नाश हो जाता है, जो अष्ट सिद्धियां प्रदान करते हैं और मुंड़ों की माला धारण करते हैं उस काशी के नाथ कालभैरव को मैं भजता हूं।


भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकं

काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम ।

नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥८॥


जो भूत, प्रेतों के स्वामी हैं और विशाल कीर्ति प्रदान करने वाले हैं, जो सत्य और नीति का रास्ता दिखाते हैं, जो जगतपति हैं उस काशी के नाथ कालभैरव को मैं भजता हूं।


॥ फल श्रुति॥

कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं

ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम ।

शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं

ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम ॥९॥


जो काल भैरव अष्टकम का पाठ करते हैं, वो ज्ञान और मुक्ति को प्राप्त करते हैं। पुण्य पाते हैं और मृत्यु के पश्चात शोक, मोह, लोभ, ताप, क्रोध आदि का नाश करने वाले भगवान काल भैरव के चरणों को प्राप्त करते हैं इसमे बिलकुल भी संदेह नहीं है।।

Monday, November 17, 2025

कुंभ का अनुभव: एक श्रद्धालु, एक स्नान, और तिलक से जन्मी नई आत्मा (आध्यात्मिकता से समाज और पहचान तक की यात्रा)

भोर का समय था। गंगा किनारे हल्की धुंध तैर रही थी और सूरज की पहली किरणें पानी पर सुनहरी चमक बिखेर रही थीं। हजारों श्रद्धालु अपने-अपने कदमों से उसी ओर बढ़ रहे थे—जहाँ आस्था, परंपरा और आत्मिक ऊर्जा एक ही स्थान पर मिलती है। उनमें से एक था अमृतेश, एक सामान्य युवक, लेकिन मन में कई सवालों से भरा हुआ। उसने हमेशा सुना था कि कुंभ स्नान पापों को धोता है, पर आज वह यह जानने आया था कि क्या यह वास्तव में आत्मा को नया जन्म दे सकता है?

स्नान का क्षण — शरीर नहीं, मन धुलता है

अमृतेश ने जैसे ही गंगा की ठंडी लहरों को छुआ, उसे लगा मानो पानी ने उसे पूरी तरह अपने भीतर समा लिया है।
डुबकी लगाते समय उसने सिर्फ एक प्रार्थना की—

“मुझे नई दृष्टि दो; पुराने बोझ से मुक्त करो।”

डुबकी से ऊपर उठते ही उसके चेहरे पर एक अजीब-सी शांति थी।
लोग कहते हैं कि कुंभ का पानी अलग होता है—पर सच यह है कि आस्था का स्पर्श अलग होता है

तीलक का स्पर्श — साधारण नहीं, ब्रह्म की छाप

स्नान के बाद वह अखाड़े की ओर बढ़ा।
एक साधु ने उसके माथे पर चंदन और भस्म का तिलक किया।

वह स्पर्श हल्का था… लेकिन असर गहरा।
उसे लगा जैसे उसके भीतर कोई पुरानी थकान टूटकर गिर गई हो—और उसकी जगह नयी ऊर्जा, नयी समझ और नयी आत्मिक शक्ति ने ले ली हो। और इसी आध्यात्मिक कंपन के बीच उसे याद आया कि ऐसे पवित्र संगम युगों से हिंदू धर्म की रीढ़ रहे हैं। प्रयागराज 2025 से लेकर आने वाले वर्षों तक यह परंपरा उसी तेजस्वी रूप में आगे बढ़ेगी—जहाँ नासिक (महाराष्ट्र) कुंभ 2027, और फिर हरिद्वार व उज्जैन 2030 के विराट आयोजन करोड़ों श्रद्धालुओं को एक बार फिर सत्य, तप और एकता के अमिट सूत्र में जोड़ेंगे।


कुंभ मेला — एक पवित्र यात्रा से कहीं अधिक

बहुत लोग सोचते हैं कि कुंभ सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान है— पर यह उससे कहीं बड़ा है।
यह भारत की आत्मा में छिपे समूह-बोध और हिंदू पहचान का सबसे विशाल रूप है।

1. धार्मिक दृष्टि — आत्मिक शुद्धि और ब्रह्म से मिलन

यह ऐसे अनुष्ठानों का संगम है जहां

  • स्नान → शुद्धि

  • तिलक → पहचान

  • संगम → आत्मा का मिलन

  • साधु-संतों का दर्शन → दिशा

कुंभ व्यक्ति को उसके मूल से जोड़ता है—जहाँ धर्म नियम नहीं, अनुभव होता है।

2. सामाजिक दृष्टि — विविधता का महासंगम

कुंभ में आने वाले लोग

  • गाँव-शहर

  • गरीब-अमीर

  • युवा-वृद्ध

  • देश-विदेश

सब सीमाएं भूलकर एक ही नाव (परमात्मा) के यात्री बन जाते हैं

यह वह जगह है जहाँ भारत की विविधता एक परिवार की तरह खड़ी दिखाई देती है।
यह सामाजिक एकता का एक ऐसा रूप है, जिसे शब्दों में पिरोना मुश्किल है।

3. राजनीतिक दृष्टि — पहचान और युग-परिवर्तन का संकेत

हर युग का कुंभ एक नई लहर लेकर आता है।
आज के समय में कुंभ सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं रहा—
यह हिंदू समाज की चेतना, शक्ति और दिशा का प्रतीक भी बन चुका है।

  • अखाड़ों की बढ़ती उपस्थिति

  • युवा भागीदारी

  • मीडिया और अंतरराष्ट्रीय ध्यान

  • सरकारों का सक्रिय प्रबंधन

ये सब संकेत देते हैं कि
कुंभ अब सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि सामूहिक पहचान और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का केंद्र बन चुका है।


एक व्यक्तिगत यात्रा, जो सामूहिक इतिहास बन जाती है

अमृतेश जैसे लाखों श्रद्धालु वहाँ आते हैं अपनी आत्मा को छूने—लेकिन अनजाने ही वे एक बहुत बड़े परिवर्तन का हिस्सा बन जाते हैं।कुंभ उन्हें नया व्यक्ति बनाता है, और वही व्यक्ति मिलकर नई हिंदू चेतना, नया समाज, और नया युग निर्मित करता है।

वरुण देवता की दहाड़: समुद्र से न्याय तक (एक पौराणिक कथा, जीवन-दर्शन और आधुनिक समय का संदेश)

समुद्र की लहरें उस रात असामान्य रूप से बेचैन थीं। चंद्रमा की रोशनी पानी की सतह पर फिसलती हुई आगे बढ़ती, मानो स्वयं प्रकृति किसी बहुत बड़ी घटना की प्रतीक्षा में हो। अचानक क्षितिज पर गहरा नीला प्रकाश फैला और जलराशि के मध्य एक दिव्य आकृति प्रकट हुई- समुद्र के अधिपति, सत्य और न्याय के रक्षक, वरुण देवता।उनके हाथ में पाश (रस्सी) था- जो केवल दंड का प्रतीक नहीं था, बल्कि सत्य को बांधकर रखने की शक्ति का संकेत भी। कहा जाता है कि जहाँ असत्य का साम्राज्य बढ़ने लगता है, वहाँ वरुण देव की दहाड़ समुद्र की गर्जना बनकर गूँजती है। उस रात्रि वे एक राजा को चेतावनी देने आए थे- एक ऐसा राजा जो अपनी प्रजा पर कठोर कर लगाकर सुख-सुविधाओं में डूबता जा रहा था।

वरुण देवता ने गंभीर स्वर में कहा:-

“असत्य का भार समुद्र से भी भारी होता है।

कर्म की लहरें लौटकर आती हैं- चाहे राजा हो या रंक।

सत्य को छोड़ने वाला कभी शांत नहीं रह सकता।”


राजा भयभीत होकर उनके चरणों में गिर पड़ा।

वरुण देवता ने उसे उठाया और कहा:

“बड़ी शक्ति का अर्थ बड़ा अधिकार नहीं, बड़ी जिम्मेदारी होता है।”


उस दिन राजा ने समझ लिया कि शासन का ध्येय सत्ता नहीं- सेवा है। 

वरुण देव मौन होकर समुद्र में विलीन हो गए, परंतु उनके संदेश की प्रतिध्वनि आज भी हर लहर के साथ सुनाई देती है।


आज के समय में वरुण देवता हमें क्या सिखाते हैं?

वरुण देवता केवल समुद्र के स्वामी नहीं हैं, वे सत्य, ईमानदारी, वचनपालन और कर्मफल के देवता हैं।

आज की तेज रफ्तार दुनिया में, जहाँ दिखावा और लाभ कई बार मूल्यों पर भारी पड़ जाते हैं, वरुण देवता का संदेश पहले से कहीं ज़्यादा प्रासंगिक है-

1. ईमानदारी का महासागर सबसे गहरा होता है

समुद्र की गहराई जैसी ही ईमानदारी की गहराई है- जो अंदर से मजबूत बनाती है, भले ही बाहर की दुनिया उथल-पुथल में हो।

2. सच बोलना सिर्फ नैतिकता नहीं- यह आत्मबल है

सच बोलने वाला व्यक्ति समुद्र की तरह विशाल बनता है- उसे डगमगाने वाली आँधियाँ भी कम पड़ जाती हैं।

3. कर्म का पाश कभी गलत को नहीं छोड़ता

वरुण देव का पाश हमें याद दिलाता है कि-  “अच्छा करो, अच्छा पाओ; बुरा करो, तो उसके तरंग तुम्हें ही लौटकर आएँगी।”


दर्शनात्मक दृष्टि से-

क्या वरुण देवता का विचार हमें अधिक नैतिक और जजमेंट-फ्री जीवन जीने में मदद कर सकता है?

जी हाँ, और बहुत गहराई से।


✔ नैतिकता (Ethics)

वरुण देवता का मुख्य सिद्धांत है—

“मैं सब देखता हूँ, लेकिन केवल न्याय के लिए।”

यानी नैतिकता का आधार डर नहीं, बल्कि सत्य के प्रति सम्मान होना चाहिए।


✔ जजमेंट-फ्री रहना (Non-Judgment)

वरुण देव समुद्र जैसे हैं—

वह सबको समेटते हैं, पर किसी का मूल्यांकन सतह से नहीं करते।

यह हमें सिखाता है कि—

दूसरों पर तुरंत निर्णय न करें

हर व्यक्ति के भीतर गहराई और संघर्ष को समझने की कोशिश करें

सहानुभूति (empathy) को जीवन का आधार बनाएं


✔ भीतर की शांति (Inner Balance)

जब व्यक्ति सच, ईमानदारी और कर्मफल के सिद्धांत पर चलता है—

तो बाहर कितना भी तूफान क्यों न हो,

अंदर की लहरें शांत रहती हैं।


निष्कर्ष:-

वरुण देवता की दहाड़ केवल पौराणिक कथा नहीं,

बल्कि एक चेतावनी और प्रेरणा है—

“सत्य के मार्ग पर चलो,

कर्म के प्रति सजग रहो,

और जीवन को समुद्र की तरह गहरा, शांत और सार्थक बनाओ।”

इसी संदेश को अपनाकर हम न केवल अधिक नैतिक बनते हैं,

बल्कि अधिक दयालु, समझदार और संतुलित भी और यही वास्तविक आध्यात्मिकता है।

Saturday, May 13, 2023

कृष्ण पक्ष waning moon phaseऔर शुक्ल पक्ष waxing moon phase

कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष:-

हिंदू चंद्र कैलेंडर में दो प्रकार के पक्ष होते हैं।

1.) कृष्ण पक्ष, जिसे अंधेरे पक्ष भी कहते हैं, पूर्णिमा के बाद आने वाले दिन से शुरू होता है और लगभग 15 दिन तक चलता है। इस पक्ष में चंद्रमा का आकार धीरे-धीरे कम होता है। यह पक्ष अमावस्या तक चलता है जो कि नए चंद्रमा का दिन होता है।

2.) शुक्ल पक्ष, जिसे उज्ज्वल पक्ष भी कहते हैं, अमावस्या के दिन के बाद आने वाले दिन से शुरू होता है और लगभग 15 दिन तक चलता है। इस पक्ष में चंद्रमा का आकार बढ़ता है। यह पक्ष पूर्णिमा तक चलता है जो कि पूर्ण चंद्रमा का दिन होता है।

हिंदू धर्म में ये दो पक्ष बहुत महत्वपूर्ण होते हैं और इनका उपयोग विभिन्न त्योहारों और धार्मिक आयोजनों के समय की गणना के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, दीवाली, दुर्गा पूजा, होली आदि के त्योहार पूर्णिमा या अमावस्या की रात के दिन मनाए जाते हैं। इन त्यो

भक्त प्रह्लाद की कहानी devotee prahlad tales

भक्त प्रह्लाद की कहानी हमें यह बताती है कि भगवान की भक्ति और उनके वचनों का पालन करना हमें सभी दुःखों से मुक्त कराता है। यह कथा हिंदू धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण कथा है जो हमें अनुशासन, धैर्य और अपने आस्तिक विचारों के लिए जाना जाता है।

प्रह्लाद एक राजा के बेटे थे। 
वह अपने पिता के विरुद्ध होने के बावजूद, भगवान विष्णु की भक्ति करते रहते थे। 
उनके पिता हिरण्यकशिपु एक अहंकारी राजा थे जो अपने आपको भगवान से भी ऊँचा समझते थे। 
वह अपने पुत्र की भक्ति से बहुत नाराज थे और इसके लिए उन्होंने प्रह्लाद को सख्त दंड देने का फैसला किया।

हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को बहुत से तरह के दंड दिए लेकिन प्रह्लाद ने अपनी भक्ति से हमेशा भगवान के नाम का जाप करते रहे। वे बिना किसी डर या नतमस्तकता के अपने आस्तिक विचारों के लिए जाने जाते थे।

हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र के विचारों से तंग आकर, उन्हें अनेक अधमरे प्रयोगों से गुजरने के लिए प्रताड़ित किया। उसे नाग के बिछौने पर बैठाया गया था जो समुद्र में डूबता था। 

फिर उसे भुआ होलिका के साथ अग्नि में डाला गया और फिर भी वह उससे बच गया। 

अंत में, हिरण्यकशिपु ने उसको पट्टी में बाँध कर पहाड़ से फेंकने का आदेश दिया। लेकिन भगवान ने प्रह्लाद को बचाया और उसको उसके पिता से मुक्त कराया। 

भगवान ने नरसिंह रूप धारण किया, जो आदमी और सिंह दोनों का रूप था। नरसिंह ने हिरण्यकशिपु को मार डाला और उसको उसकी अधमरी सोच से मुक्त कराया।

प्रह्लाद की कहानी हमें यह बताती है कि भक्ति और उनके आस्तिक विचार हमें हर मुश्किल से मुक्त कर सकते हैं। यह हमें धैर्य, उत्साह और उन्नति के लिए प्रेरित करती है।

ध्रुव की कहानी dhruv tales in hinduism

ध्रुव की कहानी हिंदू धर्म की एक प्रसिद्ध कहानी है। 

ध्रुव एक युवा राजकुमार था, जो प्राचीन भारत में रहता था। वह राजा उत्तानपाद के बड़े पुत्र थे और उनकी पहली पत्नी सुनीति के बेटे थे।

हालांकि, उनके पिता की दूसरी पत्नी सुरुचि ने ध्रुव के साथ अच्छी तरह से बरताव नहीं किया था। 
वह सुनीति और उसके बेटे से ईर्ष्या करती थी। 

एक दिन, ध्रुव अपने पिता के गोद में बैठने की कोशिश की, लेकिन सुरुचि ने उसे दूर धकेल दिया। वह बोली कि केवल उसका बेटा राजा बनेगा और ध्रुव को महल से निकाल दिया जाएगा।

ध्रुव दुखी हो गया और अपनी माँ सुनीति से मिला। सुनीति ने उन्हें भगवान विष्णु की शक्ति के बारे में बताया और उन्हें भगवान की कृपा के लिए प्रार्थना करने की सलाह दी। ध्रुव ने फिर निर्णय लिया कि उन्हें महल छोड़ना होगा और वन में जाना होगा ताकि वह भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त कर सके।

उनकी माता ने उन्हें आशीर्वाद देकर रास्ता दिखाया और ध्रुव वन में चला गया। वहाँ पहुंचकर उन्होंने भगवान विष्णु का ध्यान करना शुरू किया। ध्रुव बहुत ही कड़ी मेहनत से भगवान की पूजा करने लगा। उन्होंने एक चक्रवर्ती बनने की इच्छा व्यक्त की।

भगवान विष्णु उनकी प्रार्थना को समझ गए और उनके समक्ष प्रकट हुए। उन्होंने ध्रुव को आशीर्वाद दिया कि वह चक्रवर्ती बनेगा और उसका नाम आकाश में स्थाई तारे के रूप में अमर होगा।

ध्रुव बहुत खुश था और अपने पिता के पास वापस जाना चाहता था। उन्होंने उनकी पत्नी सुरुचि और बेटे को देखा, जो उसे बुरी नजर से देख रहे थे। उन्होंने ध्रुव के आशीर्वाद के बारे में जाना और उनसे माफी मांगी।

इस तरह ध्रुव ने भगवान विष्णु की कृपा से अपने सपनों को पूरा किया और अपने परिवार को सम्मान प्राप्त किया। 

ध्रुव की कहानी हमें यह सिखाती है कि धैर्य, समर्पण और प्रभु की पूजा जीवन में सफलता के लिए आवश्यक होते हैं। जब हम अपने सपनों के लिए दृढ़ संकल्प बनाते हैं तो हमें उन्हें पूरा करने के लिए धैर्य रखना होता है। समर्पण उन्हें सफलता तक ले जाने में मदद करता है और प्रभु की पूजा हमें शक्ति और सहायता प्रदान करती है।

ध्रुव की कहानी हमें यह भी बताती है कि हमें निर्धारित लक्ष्य के प्रति संकल्पित रहना चाहिए और अपने सपनों को पूरा करने के लिए कोई भी परिस्थिति हमें हिम्मत नहीं हारने देनी चाहिए।

ध्रुव की कहानी हिंदू धर्म में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कथा है जो हमें सफलता के लिए अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ संकल्प और धैर्य का महत्व बताती है।

Shlok for Goddess Saraswati सरस्वती माता का श्लोक

या कुन्देन्दु तुषार हार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता।
या वीणा वरदण्ड मण्डितकरा, या श्वेत पद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा।।

Translation:-
May the white-garmented, moon-crested, and white-clad Goddess Saraswati,
whose hands are adorned with the boon-granting vina (musical instrument) and rosary,
who is seated on a white lotus and is worshipped by Lord Brahma, Lord Vishnu, Lord Shiva, and other Devas,
protect me and completely remove my lethargy and ignorance.