पंचांग की गणना के अनुसार 07/11/2018 बुधवार को
6:30 PM से 8:30 PM तक वृष लग्न, स्वाति नक्षत्र रहेगा।
इस दौरान महालक्ष्मी की पूजा करना शुभ सौभाग्यदायकर रहेगा।
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Wednesday, November 7, 2018
Diwali Deepawali Lakshami Poojan Muhurt 2018
Saturday, November 3, 2018
DhanTeras Muhurt and Poojan Vidhi 05_11_2018, सोमवार
*धनतेरस पूजन विधि*
( घर में धन धान्य वृद्धि और सुख शांति के लिए )
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दिवाली से पहले धनतेरस पर पूजा का विशेष महत्व होता है. इस दिन धन और आरोग्य के लिए भगवान धन्वंतरि- भगवान महामृत्युंजय शिव और लक्ष्मी- कुबेर की पूजा की जाती है, साथ में धन को कमाने और उसके सदुपयोग की सद्बुद्धि के लिए गायत्री और गणेश के मन्त्रों से पूजा की जाती है।
👉🏻1- गुरु आवाहन मंत्र - *ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु, गुरुरेव महेश्वरः । गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।*
👉🏻2 - गणेश आवाहन मन्त्र - *ॐ एक दन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दंती प्रचोदयात ।।*
👉🏻3- लक्ष्मी आवाहन मंत्र - *ॐ महा लक्ष्म्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ।*
👉🏻४ -दीपदान मंत्र ( कम से कम 5 या 11 या 21 घी के दीपकों को प्रज्वल्लित करें )-
*ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्नी: स्वाहा । सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा । अग्निर्वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चो स्वाहा । सूर्यो वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्च: स्वाहा । ज्योतिः सूर्य्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा ।।*
👉🏻5 - चौबीस(२४) बार गायत्री मंत्र का जप करें - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् , भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् ।*
👉🏻6- तीन बार महामृत्युंजय मंत्र का जप करें - *ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।*
👉🏻7 - तीन बार लक्ष्मी गायत्री मंत्र का जप करें - *ॐ महा लक्ष्म्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॥*
👉🏻8 - तीन बार गणेश मंत्र का जप करें - *ॐ एक दन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥*
👉🏻9 - तीन बार कुबेर का मंत्र जप करें - *ॐ यक्ष राजाय विद्महे, वैश्रवणाय धीमहि, तन्नो कुबेराय प्रचोदयात्॥*
👉🏻10- तीन बार आरोग्य देवता धन्वन्तरि गायत्री मन्त्र का जप करें- *ॐ तत् पुरुषाय विद्महे, अमृत कलश हस्ताय धीमहि, तन्नो धन्वन्तरि प्रचोदयात्*
👉🏻11 - शान्तिपाठ - *ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।*
दीपक नकारात्मकता का शमन कर सकारात्मक दैवीय शक्तियों को घर में प्रवेश देता है। इसलिए दीपक की जगह विद्युत् से जलने वाली led या किसी भी प्रकार की लाईट नहीं ले सकती। घर के मुख्य् द्वार पर दो घी या सरसों या तिल के तेल के रुई बाती वाले दीपक, एक तुलसी के पास, एक रसोईं में और एक बड़ा मुख्य् दीपक सूर्यास्त के बाद जलाकर रख दें। फिर कलश स्थापना कर पूजन करें। दीपयज्ञ/दीपदान के बाद घर की तिज़ोरी/लेपटॉप/बैंक की पासबुक इत्यादि का पूजन अवश्य करें।
👉🏻 *धनतेरस की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त*
1. प्रदोष काल:-
सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 की अवधि को प्रदोषकाल के नाम से जाना जाता है. प्रदोषकाल में दीपदान व लक्ष्मी पूजन करना शुभ रहता है.
दिल्ली में 5 नवम्बर सूर्यास्त समय सायं 17:30 तक रहेगा. इस समय अवधि में स्थिर लग्न 18:10 से लेकर 20:09 तक वृषभ लग्न रहेगा. मुहुर्त समय में होने के कारण घर-परिवार में स्थायी लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.
2. चौघाडिया मुहूर्त:-
5 नवम्बर 2018,
अमृ्त काल मुहूर्त 16:30 से 18:00 तक
चर 18:56 से लेकर 19:30 तक
उपरोक्त में लाभ समय में पूजन करना लाभों में वृ्द्धि करता है. शुभ काल मुहूर्त की शुभता से धन, स्वास्थय व आयु में शुभता आती है. सबसे अधिक शुभ अमृ्त काल में पूजा करने का होता है.
घर में बना हलवा या खीर प्रसाद में चढ़ाएं। यदि बजट है तो चांदी या स्वर्ण का कुछ भी सामान ख़रीद ले शाम 6:30 से पहले, उसे दूध में नहला के पूजन स्थल में साफ़ स्टील की कटोरी में लाल वस्त्र के ऊपर रख लें। उसका तिलक चन्दन कर पूजन के पश्चात् तिज़ोरी में रख दें, दीपावली के दिन पुनः उसका पुजन होगा।
Saturday, October 27, 2018
KarvaChoth Vrut ( करवा चौथ )
*!!करवा चौथ!!से जुड़ी जानकारी पढ़िए !!🙏🙏*
🙏करवा चौथ सुहागिन महिलाओं के सभी व्रतों में बेहद खास है। इस दिन महिलाएं दिन भर भूखी-प्यासी रहकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
यही नहीं कुंवारी लड़कियां भी मनवांछित वर के लिए या होने वाले *पति की खातिर निर्जला व्रत रखती हैं।*
इस दिन पूरे विधि-विधान से माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने के बाद करवा चौथ की कथा सुनी जाती है।फिर रात के समय चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही यह व्रत संपन्न होता है।
*मान्यता है कि करवा चौथ का व्रत करने से अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है।*
*🙏 करवा चौथ कब है?👈*
*करवा चौथ का त्योहार दीपावली से नौ दिन पहले मनाया जाता है।*
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार करवा चौथ का व्रत हर साल *कार्तिक मास की चतुर्थी* को आता है।
वहीं, अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से यह त्योहार अक्टूबर के महीने में आता है। *इस बार करवा चौथ 27 अक्टूबर को है।*
🙏 *करवा चौथ की तिथि और शुभ मुहूर्त*
*🌹👉चतुर्थी तिथि प्रारंभ- 27 अक्टूबर की शाम 06 बजकर 37 मिनट*
*चतुर्थी तिथि समाप्त--*
*28 अक्टूबर की शाम 04 बजकर 54 मिनट*
*पूजा का शुभ मुहूर्त27 अक्टूबर की शाम 05 बजकर 48 मिनट से शाम 07 बजकर 04 मिनट तक* ।
*कुल अवधि-1 घंटे 16 मिनट।*
*करवा चौथ की पूजा विधि*
👉करवा चौथ वाले दिन *ब्रहम् मुहूर्त* में उठकर स्नान कर लें।
अब इस मंत्र का उच्चारण करते हुए व्रत का संकल्प लें -
*"मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।"*
👉सूर्यादय से पहले सरगी ग्रहण करें और फिर दिन भर निर्जला व्रत रखें।
👉दीवार पर गेरू से फलक बनाएं और भिगे हुए चावलों को पीसकर घोल तैयार कर लें।
👉इस घोल से फलक पर करवा का चित्र बनाएं। वैसे बाजार में आजकल रेडीमेड फोटो भी मिल जाती हैं। इन्हें वर कहा जाता है। चित्रित करने की कला को करवा धरना का जाता है।
👉आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। मीठे में हल्वा या खीर बनाएं और पकवान भी तैयार करें।
👉अब पीली मिट्टी और गोबर की मदद से माता पार्वती की प्रतिमा बनाएं। अब इस प्रतिमा को लकड़ी के आसान पर बिठाकर मेहंदी, महावर, सिंदूर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी और बिछुआ अर्पित करें।
👉जल से भर हुआ लोट रखें।
👉करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें।
👉रोली से करवा पर स्वास्तिक बनाएं।
👉अब गौरी-गणेश और चित्रित करवा की पूजा करें।
👉पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें -
*"उुॅ नम. शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे"।*
👉करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
👉कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपने सभी बड़ों का आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।
👉पानी का लोटा और 13 दाने गेहूं के अलग रख लें।
👉चंद्रमा के निकलने के बाद छलनी की ओट से पति को देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें चंद्रमा को अर्घ्य देते वक्त पति की लंबी उम्र और जिंदगी भर आपका साथ बना रहे इसकी कामना करें।
👉अब पति को प्रणाम कर उनसे आशीर्वाद लें और उनके हाथ से जल पीएं। अब पति के साथ बैठकर भोजन करें।
*करवा चौथ की शुभकामनाएं*
Friday, July 27, 2018
#ChandraGrahan #SuryaGrahan #Dinank #Samay #Mantra #lunar eclipse #Solar Eclipse #date #time #phrase
वर्ष 2026 में 4 ग्रहण होंगे, 2 सूर्य ग्रहण और 2 चंद्र ग्रहण
सूर्यग्रहण कब से कब तक:-
1.) 17 फ़रवरी सूर्यग्रहण (वलयाकार)
दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर, अंटार्कटिका
2.) 12 अगस्त सूर्यग्रहण (कुल)
यूरोप, एशिया में उत्तर, उत्तर/पश्चिम अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका का अधिकांश भाग, प्रशांत, अटलांटिक, आर्कटिक
चंद्रग्रहण कब से कब तक:-
1.) 2–3 मार्च चंद्रग्रहण (कुल)
पूर्व में यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर, आर्कटिक, अंटार्कटिका
2.) 27–28 अगस्त चंद्रग्रहण (आंशिक)
यूरोप, एशिया में पश्चिम, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर, अंटार्कटिका
चंद्र ग्रहण के दौरान इन मंत्रों का जाप करें:-
चंद्र मंत्र: "ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम:" या "ॐ सों सोमाय नम:" का जाप करना शुभ होता है ।
गायत्री मंत्र: "ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।।"
महामृत्युंजय मंत्र: "ॐ त्रयंबकं यजामहे, सुगन्धि पुष्टिवर्द्धनं, उर्वारुक्मिाव, बंधनात्, मृत्योंर्मुचीय मामृतात्।।"
दुर्गा सप्तशती कवच मंत्र: "ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै।।"
इस दौरान हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) और हनुमान जी के मंत्रोच्चारण का भी विशेष महत्व है।
Tuesday, July 24, 2018
#ChandraGrahan #ecllipse
🌕🌖🌗🌘🌑
*चंद्र ग्रहण*
27-28 जुलाई 2018 आषाढ़ पूर्णिमा ( *गुरु पूर्णिमा*) के दिन खग्रास यानी पूर्ण चंद्रग्रहण होने जा रहा है। यह ग्रहण कई मायनों में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पूर्ण चंद्रग्रहण सदी का सबसे लंबा और बड़ा चंद्रग्रहण है। इसकी पूर्ण अवधि 3 घंटा 55 मिनट होगी। यह ग्रहण भारत समेत दुनिया के अधिकांश देशों में देखा जा सकेगा। इस चंद्रग्रहण को ब्लड मून कहा जा रहा है क्योंकि ग्रहण के दौरान एक अवस्था में पहुंचकर चंद्रमा का रंग रक्त की तरह लाल दिखाई देने लगेगा। यह एक खगोलीय घटना है जिसमें चंद्रमा धरती के अत्यंत करीब दिखाई देता है।
*खग्रास चंद्रग्रहण*
यह खग्रास चंद्रग्रहण उत्तराषाढ़ा-श्रवण नक्षत्र तथा मकर राशि में लग रहा है। इसलिए जिन लोगों का जन्म उत्तराषाढ़ा-श्रवण नक्षत्र और जन्म राशि मकर या लग्न मकर है उनके लिए ग्रहण अशुभ रहेगा। मेष, सिंह, वृश्चिक व मीन राशि वालों के लिए यह ग्रहण श्रेष्ठ, वृषभ, कर्क, कन्या और धनु राशि के लिए ग्रहण मध्यम फलदायी तथा मिथुन, तुला, मकर व कुंभ राशि वालों के लिए अशुभ रहेगा।
*ग्रहण कब से कब तक*
ग्रहण 27 जुलाई की मध्यरात्रि से प्रारंभ होकर 28 जुलाई को तड़के समाप्त होगा।
*स्पर्श* : रात्रि 11 बजकर 54 मिनट
*सम्मिलन* : रात्रि 1 बजे
*मध्य* : रात्रि 1 बजकर 52 मिनट
*उन्मीलन* : रात्रि 2 बजकर 44 मिनट
*मोक्ष* : रात्रि 3 बजकर 49 मिनट
*ग्रहण का कुल पर्व काल* : 3 घंटा 55 मिनट
*सूतक कब प्रारंभ होगा*
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस खग्रास चंद्रग्रहण का सूतक आषाढ़ पूर्णिमा शुक्रवार दिनांक 27 जुलाई को ग्रहण प्रारंभ होने के तीन प्रहर यानी 9 घंटे पहले लग जाएगा। यानी 27 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 54 मिनट पर लग जाएगा। सूतक लगने के बाद कुछ भी खाना-पीना वर्जित रहता है। रोगी, वृद्ध, बच्चे और गर्भवती स्त्रियां सूतक के दौरान खाना-पीना कर सकती हैं। सूतक प्रारंभ होने से पहले पके हुए भोजन, पीने के पानी, दूध, दही आदि में तुलसी पत्र या कुशा डाल दें। इससे सूतक का प्रभाव इन चीजों पर नहीं होता।
*ग्रहण काल में क्या सावधानियां रखें*
*ग्रहणकाल में प्रकृति में कई तरह की अशुद्ध और हानिकारक किरणों का प्रभाव रहता है। इसलिए कई ऐसे कार्य हैं जिन्हें ग्रहण काल के दौरान नहीं किया जाता है।
*ग्रहणकाल में सोना नहीं चाहिए। वृद्ध, रोगी, बच्चे और गर्भवती स्त्रियां जरूरत के अनुसार सो सकती हैं। वैसे यह ग्रहण मध्यरात्रि से लेकर तड़के के बीच होगा इसलिए धरती के अधिकांश देशों के लोग निद्रा में होते हैं।
*ग्रहणकाल में अन्न, जल ग्रहण नहीं करना चाहिए।
*ग्रहणकाल में यात्रा नहीं करना चाहिए, दुर्घटनाएं होने की आशंका रहती है।
*ग्रहणकाल में स्नान न करें। ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान करें।
*ग्रहण को खुली आंखों से न देखें।
*ग्रहणकाल के दौरान महामृत्युंजय मत्र का जाप करते रहना चाहिए।
*गर्भवती स्त्रियां क्या करें*
ग्रहण का सबसे अधिक असर गर्भवती स्त्रियों पर होता है। ग्रहण काल के दौरान गर्भवती स्त्रियां घर से बाहर न निकलें। बाहर निकलना जरूरी हो तो गर्भ पर चंदन और तुलसी के पत्तों का लेप कर लें। इससे ग्रहण का प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर नहीं होगा। ग्रहण काल के दौरान यदि खाना जरूरी हो तो सिर्फ खानपान की उन्हीं वस्तुओं का उपयोग करें जिनमें सूतक लगने से पहले तुलसी पत्र या कुशा डला हो। गर्भवती स्त्रियां ग्रहण के दौरान चाकू, छुरी, ब्लेड, कैंची जैसी काटने की किसी भी वस्तु का प्रयोग न करें। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगों पर बुरा असर पड़ता है। सुई से सिलाई भी न करें। माना जाता है इससे बच्चे के कोई अंग जुड़ सकते हैं। ग्रहण काल के दौरान भगवान श्रीकृष्ण के मंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करती रहें।
💐 *जय श्री हरि*💐
Monday, June 11, 2018
श्री मद्-भगवत गीता
एक हिन्दू को इन सभी बातों की जानकारी, मुँह जबानी रखनी चाहिए :
"श्री मद्-भगवत गीता"के बारे में-
ॐ . किसको किसने सुनाई?
उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।
ॐ . कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।
ॐ. भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ.- रविवार के दिन।
ॐ. कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी
ॐ. कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।
ॐ. कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में
ॐ. क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।
ॐ. कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय
ॐ. कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक
ॐ. गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।
ॐ. गीता को अर्जुन के अलावा
और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने
ॐ. अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को
ॐ. गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में
ॐ. गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है।
ॐ. गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद
ॐ. गीता का सार क्या है?
उ.- प्रभु श्रीकृष्ण की शरण लेना
ॐ. गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण जी ने- 574
अर्जुन ने- 85
धृतराष्ट्र ने- 1
संजय ने- 40.
अपनी युवा-पीढ़ी को श्री मदभगवद गीता के बारे में जानकारी पहुचाने हेतु इसे ज्यादा से ज्यादा शेअर करे।
धन्यवाद
Thursday, April 5, 2018
SHRI SUKTAM MAHALAXMI MAA
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥१॥
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्॥२॥
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मादेवी जुषताम्॥३॥
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वयेश्रियम्॥४॥
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥५॥
तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मी:॥६॥
प्रादुर्भुतो सुराष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृध्दिं ददातु मे॥७॥
अभूतिमसमृध्दिं च सर्वानिर्णुद मे गृहात॥८॥
ईश्वरिं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्॥९॥
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्री: श्रेयतां यश:॥१०॥
श्रियं वासयमेकुले मातरं पद्ममालिनीम्॥११॥
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले॥१२॥
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥१३॥
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आवह॥१४॥
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्॥१५॥
सूक्तं पञ्चदशर्च च श्रीकाम: सततं जपेत्॥१६॥
तन्मे भजसि पद्मक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्॥१७॥
धनं मे लभतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे॥१८॥
विश्वप्रिये विष्णुमनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधस्त्वं॥१९॥
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे॥२०॥
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरूणं धनमस्तु मे॥२१॥
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिन:॥२२॥
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्॥२३॥
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीदमह्यम्॥२४॥
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम्॥२५॥
तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात्॥२६॥
धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायु:॥२७॥
Tuesday, March 20, 2018
Gangour Vrat Ki Katha ( गणगौर व्रत कथा)
एक बार भगवान शंकर तथा पार्वतीजी नारदजी के साथ भ्रमण को निकले। चलते-चलते वे चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन एक गाँव में पहुँच गए। उनके आगमन का समाचार सुनकर गाँव की श्रेष्ठ कुलीन स्त्रियाँ उनके स्वागत के लिए स्वादिष्ट भोजन बनाने लगीं।
भोजन बनाते-बनाते उन्हें काफी विलंब हो गया। किंतु साधारण कुल की स्त्रियाँ श्रेष्ठ कुल की स्त्रियों से पहले ही थालियों में हल्दी तथा अक्षत लेकर पूजन हेतु पहुँच गईं। पार्वतीजी ने उनके पूजा भाव को स्वीकार करके सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। वे अटल सुहाग प्राप्ति का वरदान पाकर लौटीं। तत्पश्चात उच्च कुल की स्त्रियाँ अनेक प्रकार के पकवान लेकर गौरीजी और शंकरजी की पूजा करने पहुँचीं। सोने-चाँदी से निर्मित उनकी थालियों में विभिन्न प्रकार के पदार्थ थे।
उन स्त्रियों को देखकर भगवान शंकर ने पार्वतीजी से कहा- 'तुमने सारा सुहाग रस तो साधारण कुल की स्त्रियों को ही दे दिया। अब इन्हें क्या दोगी?'
पार्वतीजी ने उत्तर दिया- 'प्राणनाथ! आप इसकी चिंता मत कीजिए। उन स्त्रियों को मैंने केवल ऊपरी पदार्थों से बना रस दिया है। इसलिए उनका रस धोती से रहेगा। परंतु मैं इन उच्च कुल की स्त्रियों को अपनी उँगली चीरकर अपने रक्त का सुहाग रस दूँगी। यह सुहाग रस जिसके भाग्य में पड़ेगा, वह तन-मन से मुझ जैसी सौभाग्यवती हो जाएगी।'
जब स्त्रियों ने पूजन समाप्त कर दिया, तब पार्वतीजी ने अपनी उँगली चीरकर उन पर छिड़क दी। जिस पर जैसा छींटा पड़ा, उसने वैसा ही सुहाग पा लिया। तत्पश्चात भगवान शिव की आज्ञा से पार्वतीजी ने नदी तट पर स्नान किया और बालू की शिव-मूर्ति बनाकर पूजन करने लगीं। पूजन के बाद बालू के पकवान बनाकर शिवजी को भोग लगाया।
प्रदक्षिणा करके नदी तट की मिट्टी से माथे पर तिलक लगाकर दो कण बालू का भोग लगाया। इतना सब करते-करते पार्वती को काफी समय लग गया। काफी देर बाद जब वे लौटकर आईं तो महादेवजी ने उनसे देर से आने का कारण पूछा।
उत्तर में पार्वतीजी ने झूठ ही कह दिया कि वहाँ मेरे भाई-भावज आदि मायके वाले मिल गए थे। उन्हीं से बातें करने में देर हो गई। परंतु महादेव तो महादेव ही थे। वे कुछ और ही लीला रचना चाहते थे। अतः उन्होंने पूछा- 'पार्वती! तुमने नदी के तट पर पूजन करके किस चीज का भोग लगाया था और स्वयं कौन-सा प्रसाद खाया था?'
स्वामी! पार्वतीजी ने पुनः झूठ बोल दिया- 'मेरी भावज ने मुझे दूध-भात खिलाया। उसे खाकर मैं सीधी यहाँ चली आ रही हूँ।' यह सुनकर शिवजी भी दूध-भात खाने की लालच में नदी-तट की ओर चल दिए। पार्वती दुविधा में पड़ गईं। तब उन्होंने मौन भाव से भगवान भोले शंकर का ही ध्यान किया और प्रार्थना की - हे भगवन! यदि मैं आपकी अनन्य दासी हूँ तो आप इस समय मेरी लाज रखिए।
यह प्रार्थना करती हुई पार्वतीजी भगवान शिव के पीछे-पीछे चलती रहीं। उन्हें दूर नदी के तट पर माया का महल दिखाई दिया। उस महल के भीतर पहुँचकर वे देखती हैं कि वहाँ शिवजी के साले तथा सलहज आदि सपरिवार उपस्थित हैं। उन्होंने गौरी तथा शंकर का भाव-भीना स्वागत किया। वे दो दिनों तक वहाँ रहे।
तीसरे दिन पार्वतीजी ने शिव से चलने के लिए कहा, पर शिवजी तैयार न हुए। वे अभी और रुकना चाहते थे। तब पार्वतीजी रूठकर अकेली ही चल दीं। ऐसी हालत में भगवान शिवजी को पार्वती के साथ चलना पड़ा। नारदजी भी साथ-साथ चल दिए। चलते-चलते वे बहुत दूर निकल आए। उस समय भगवान सूर्य अपने धाम (पश्चिम) को पधार रहे थे। अचानक भगवान शंकर पार्वतीजी से बोले- 'मैं तुम्हारे मायके में अपनी माला भूल आया हूँ।'
'ठीक है, मैं ले आती हूँ।' - पार्वतीजी ने कहा और जाने को तत्पर हो गईं। परंतु भगवान ने उन्हें जाने की आज्ञा न दी और इस कार्य के लिए ब्रह्मपुत्र नारदजी को भेज दिया। परंतु वहाँ पहुँचने पर नारदजी को कोई महल नजर न आया। वहाँ तो दूर तक जंगल ही जंगल था, जिसमें हिंसक पशु विचर रहे थे। नारदजी वहाँ भटकने लगे और सोचने लगे कि कहीं वे किसी गलत स्थान पर तो नहीं आ गए? मगर सहसा ही बिजली चमकी और नारदजी को शिवजी की माला एक पेड़ पर टँगी हुई दिखाई दी। नारदजी ने माला उतार ली और शिवजी के पास पहुँचकर वहाँ का हाल बताया।
शिवजी ने हँसकर कहा- 'नारद! यह सब पार्वती की ही लीला है।'
इस पर पार्वती बोलीं- 'मैं किस योग्य हूँ।'
तब नारदजी ने सिर झुकाकर कहा- 'माता! आप पतिव्रताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं। आप सौभाग्यवती समाज में आदिशक्ति हैं। यह सब आपके पतिव्रत का ही प्रभाव है। संसार की स्त्रियाँ आपके नाम-स्मरण मात्र से ही अटल सौभाग्य प्राप्त कर सकती हैं और समस्त सिद्धियों को बना तथा मिटा सकती हैं। तब आपके लिए यह कर्म कौन-सी बड़ी बात है?' महामाये! गोपनीय पूजन अधिक शक्तिशाली तथा सार्थक होता है।
आपकी भावना तथा चमत्कारपूर्ण शक्ति को देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। मैं आशीर्वाद रूप में कहता हूँ कि जो स्त्रियाँ इसी तरह गुप्त रूप से पति का पूजन करके मंगलकामना करेंगी, उन्हें महादेवजी की कृपा से दीर्घायु वाले पति का संसर्ग मिलेगा।
Wednesday, March 7, 2018
Sheetla Saptami muhurt 8 march 2018
8 MARCH 2018
3.49 AM to 5.21 AM
6.52 AM to 8.21 AM
12.46 PM to 2.14 PM
Sheetla Mata ki Vrat Katha aur Muhurt
यह कथा बहुत पुरानी है एक वार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखु कि धरती पर मेरी पूजा कोन करता है कोन मुझे मानता हे यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आई और देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर भी नही है। ना मेरी पुजा है माता शीतला गाँव कि गलियो में घूम रही थी तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उवला पानी (मांड) निचे फेका वह उवलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में (छाले) फफोले पडगये शीतला माता के पुरे शरीर में जलन होने लगी शीतला माता गाँव में इधर उधर भाग भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गई मेरा शरीर तप रहा है जल रहा हे कोई मेरी मददकरो लेकिन उस गाँव में किसी ने शीतला माता कि मदद नही कि तभी अपने घर बहार एक कुम्हारन (महिला) बेठी थी उस कुम्हारन ने देखा कि अरे यह बुडी माई तो बहुत जलगई इसके पुरे शरीर में तपन है इसके पुरे शरीर में (छाले) फफोले पड़गये है यह तपन सहन नही कर पा रही है तब उस कुम्हारन ने कहा है माँ तू यहाँ आकार बेठ जा में तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हु कुम्हारन ने उस बुडी माई पर खुब ठंडा पानी डाला और बोली हे माँ मेरे घर में रात कि बनी हुई रावडी रखी है थोड़ा दही भी है तु ठंडी (जुवार) के आटे कि रावडी और दही खाया इससे शरीर में ठंडाई मिली तब उस कुम्हारन ने कहा आ माँ बेठ जा तेरे सिर के बाल बिखरे हे ला में तेरी चोटी गुथ देती हु और कुम्हारन माई कि चोटी गूथने हेतु (कंगी) कागसी बालो में करती रही अचानक कुम्हारन कि नजर उस बुडी माई के सिर के पिछे पड़ी तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख वालो के अंदर छुपी हे यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी तभी उस बुडी माई ने कहा रुक जा बेटी तु डरमत में कोई भुत प्रेत नही हु में शीतला देवी हु में तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कोन मानता है। कोन मेरी पुजा करता है इतना कह माता चारभुजा वाली हीरे जबाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये अपने असली रुप में प्रगट हो गई माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब में गरीब इस माता को कहा विठाऊ तब माता बोली हे बेटी तु किस सोच मे पडगई तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में आसु बहते हुए कहा है माँ मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता है बिखरी हुई हे में आपको कहा बेठाऊ मेरे घर में ना तो चोकी है ना बैठने का आसन तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बेठ कर एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर कि दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फेक दिया और उस कुम्हारन से कहा है बेटी में तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हु अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग ले तब कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा है माता मेरी इक्छा है अब आप इसी (डुंगरी) गाँव मे स्थापित होकर यही रहो और जिस प्रकार आपने आपने मेरे घर कि दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ़ कर दूर किया ऐसे ही आपको जो भी होली के बाद कि सप्तमी को भक्ति भाव से पुजा कर आपकी ठंडा जल दही व वासी ठंडा भोजन चडाये उसके घर कि दरिद्रता को साफ़ करना और आपकी पुजा करने वाली नारि जाति (महिला) का अखंड सुहाग रखना उसकी गोद हमेसा भरी रखना साथ ही जो पुरुष शीतला सप्तमी को नाई के यहा बाल ना कटवाये धोबी को कपड़े धुलने ना दे और पुरुष भी आप पर ठंडा जल चडाकर नरियल फूल चडाकर परिवार सहित ठंडा वासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार में कभी दरिद्रता ना आये तव माता बोली तथाअस्तु है बेटी जो जओ तुने वरदान मांगे में सब तुझे देती हु । है बेटी तुझे आर्शिबाद देती हु कि मेरी पुजा का मुख्ख अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा। तभी उसी दिन से डुंगरी गाँव में शीतला माता स्थापित हो गई और उस गाँव का नाम हो गया (शील कि डुंगरी) शील कि डुंगरी भारत का एक मात्र मुख्ख मंदिर है। शीतला सप्तमी वहाँ बहुत विशाल मेला भरता है। इस कथा को पड़ने से घर कि दरिद्रता का नाश होने के साथ सभी मनोकामना पुरी होती है।
🚩जय माँ शितला सबका कल्याण करे..
Wednesday, January 31, 2018
Shri Chandra Mantra (Chandragrahan)
ॐ ऐंकलिन सोमय नमः
ओम श्री श्री चंद्रमसे नमः
दधीखन्तुशर- ंभ शिरोडरणाव संभवाँ
ॐ सोम सोमाय नमः