दीवाली लक्ष्मी पूजा
शुभ मुहूर्त
प्रातःकाल मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) = 07:58 AM - 12:05 PM
अपराह्न मुहूर्त (शुभ) = 1:27 PM - 2:49 PM
सायंकाल मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) = 5:33 PM - 10:27 PM
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दीवाली लक्ष्मी पूजा
शुभ मुहूर्त
प्रातःकाल मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) = 07:58 AM - 12:05 PM
अपराह्न मुहूर्त (शुभ) = 1:27 PM - 2:49 PM
सायंकाल मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) = 5:33 PM - 10:27 PM
इस शुभ मुहूर्त में करें खरीदारी त्रयोदशी तिथि का मान 27 अक्तूबर गुरुवार को शाम 5:12 से 28 अक्तूबर को शाम 6:17 तक है। इसलिए त्रयोदशी तिथि सूर्योदय से शाम 6:17 तक रहेगा। इस दिन हस्त नक्षत्र, वैधृति योग और अमृत योग व्यात रहेगी।
इस दिन लक्ष्मी पूजन की शुभ मुहूर्त प्रदोष काल और वृष लग्न शाम 6:29 से 7:50 बजे तक है। इस दिन स्थिर लग्न में की गयी खरीदारी अति शुभ फलदायक होती है। त्रयोदशी तिथि में स्थिर लग्न सुबह 07:50 से 09:50 बजे तक दोपहर 01:55 से 03:08 बजे तक और रात 06:29 से 08:12 बजे तक होने के कारण इस बीच की गयी खरीदारी शुभफल दायी होता है। इस दिन लक्ष्मी पूजन हेतु श्रेष्ठ मुहूर्त प्रदोष काल एवं वृष लग्न 06:29 से 07:50 बजे रात तक है।
आज रवि पुष्य है.इस बारे में विस्तृत जानकारी आपके लिए:-पुष्य का अर्थ है पोषण करने वाला, ऊर्जा व शक्ति प्रदान करने वाला. मतान्तर से पुष्य को पुष्प का बिगडा़ रुप मानते हैं। पुष्य का प्राचीन नाम तिष्य शुभ, सुंदर तथा सुख संपदा देने वालाहै । विद्वान इस नक्षत्र को बहुत शुभ और कल्याणकारी मानते हैं। विद्वान इस नक्षत्र का प्रतीक चिह्न गाय का थन मानते हैं। उनके विचार से गाय का दूध पृ्थ्वी लोक का अमृ्त है। पुष्य नक्षत्र गाय के थन से निकले ताजे दूध सरीखा पोषणकारी, लाभप्रद व देह और मन को प्रसन्नता देने वाला होता है। राशि में 3 डिग्री 20 मिनट से 16 डिग्री 40 मिनट तक होती है। यह क्रान्ति वृ्त्त से 0 अंश 4 कला 37 विकला उत्तर तथा विषुवत वृ्त्त से 18 अंश 9 कला 59 विकला उत्तर में है। इस नक्षत्र में तीन तारे तीर के आगे का तिकोन सरीखे जान पड़ते हैं। बाण का शीर्ष बिन्दु या पैनी नोंक का तारा पुष्य क्रान्ति वृ्त्त पर पड़ता है। पुष्य को ऋग्वेद में तिष्य अर्थात शुभ या माँगलिक तारा भी कहते हैं। सूर्य जुलाई के तृ्तीय सप्ताह में पुष्य नक्षत्र में गोचर करता है। उस समय यह नक्षत्र पूर्व में उदय होता है। मार्च महीने में रात्रि 9 बजे से 11 बजे तक पुष्य नक्षत्र अपने शिरोबिन्दु पर होता है। पौष मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है। इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है। रविवार को खरीदी का शुभ मुहूर्त सुबह 9 बजकर 15 मिनट से दोपहर 12 बजे तक रहेगा। अमृत का चौघड़िया दोपहर 1 बजकर 30 मिनट से अपरान्ह 3 बजे तक रहेगा। शुभ का चौघड़िया शाम को 4 बजकर 30 मिनट से रात 9 बजे तक रहेगा। स्थिर लग्नों के अनुसार वृश्चिक लग्न सुबह 8 बजकर 8 मिनट से 10 बजकर 24 मिनट तक रहेगी। कुंभ लग्न दोपहर 2 बजकर 17 मि. से 3 बजकर 50 मि. तक रहेगी। वृषभ लग्न शाम 7 बजकर 1 मि. से 8 बजकर 59 मिनट तक रहेग !!
१. घर में सुबह सुबह कुछ देर के लिए भजन अवशय लगाएं ।
२. घर में कभी भी झाड़ू को खड़ा करके नहीं रखें, उसे पैर नहीं लगाएं, न ही उसके ऊपर से गुजरे अन्यथा घर में बरकत की कमी हो जाती है। झाड़ू हमेशा छुपा कर रखें |
३. बिस्तर पर बैठ कर कभी खाना न खाएं, ऐसा करने से धन की हानी होती हैं। लक्ष्मी घर से निकल जाती है1 घर मे अशांति होती है1
४. घर में जूते-चप्पल इधर-उधर बिखेर कर या उल्टे सीधे करके नहीं रखने चाहिए इससे घर में अशांति उत्पन्न होती है।
५. पूजा सुबह 6 से 8 बजे के बीच भूमि पर आसन बिछा कर पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ कर करनी चाहिए । पूजा का आसन जुट अथवा कुश का हो तो उत्तम होता है |
६. पहली रोटी गाय के लिए निकालें। इससे देवता भी खुश होते हैं और पितरों को भी शांति मिलती है
|७.पूजा घर में सदैव जल का एक कलश भरकर रखें जो जितना संभव हो ईशान कोण के हिस्से में हो |
८. आरती, दीप, पूजा अग्नि जैसे पवित्रता के प्रतीक साधनों को मुंह से फूंक मारकर नहीं बुझाएं।
९. मंदिर में धूप, अगरबत्ती व हवन कुंड की सामग्री दक्षिण पूर्व में रखें अर्थात आग्नेय कोण में |
१०. घर के मुख्य द्वार पर दायीं तरफ स्वास्तिक बनाएं |
११. घर में कभी भी जाले न लगने दें, वरना भाग्य और कर्म पर जाले लगने लगते हैं और बाधा आती है |
१२. सप्ताह में एक बार जरुर समुद्री नमक अथवा सेंधा नमक से घर में पोछा लगाएं | इससे नकारात्मक ऊर्जा हटती है |
१३. कोशिश करें की सुबह के प्रकाश की किरणें आपके पूजा घर में जरुर पहुचें सबसे पहले |
१४. पूजा घर में अगर कोई प्रतिष्ठित मूर्ती है तो उसकी पूजा हर रोज निश्चित रूप से हो, ऐसी व्यवस्था करे |
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� ✍उपनिषद �
ईशादि १०८ उपनिषदों की सूची -
१.ईश = शुक्ल यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद्
२.केन उपनिषद् = साम वेद, मुख्य उपनिषद्
३.कठ उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद्
४.प्रश्न उपनिषद् = अथर्व वेद, मुख्य उपनिषद्
५.मुण्डक उपनिषद् = अथर्व वेद, मुख्य उपनिषद्
६.माण्डुक्य उपनिषद् = अथर्व वेद, मुख्य उपनिषद्
७.तैत्तिरीय उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद्
८.ऐतरेय उपनिषद् = ऋग् वेद, मुख्य उपनिषद्
९.छान्दोग्य उपनिषद् = साम वेद, मुख्य उपनिषद्
१०.बृहदारण्यक उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद्
११.ब्रह्म उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
१२.कैवल्य उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्
१३.जाबाल उपनिषद् (यजुर्वेद) = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
१४.श्वेताश्वतर उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
१५.हंस उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, योग उपनिषद्
१६.आरुणेय उपनिषद् = साम वेद, संन्यास उपनिषद्
१७.गर्भ उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
१८.नारायण उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, वैष्णव उपनिषद्
१९.परमहंस उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
२०.अमृत-बिन्दु उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
२१.अमृत-नाद उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
२२.अथर्व-शिर उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
२३.अथर्व-शिख उपनिषद् =अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
२४.मैत्रायणि उपनिषद् = साम वेद, सामान्य उपनिषद्
२५.कौषीतकि उपनिषद् = ऋग् वेद, सामान्य उपनिषद्
२६.बृहज्जाबाल उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
२७.नृसिंहतापनी उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
२८.कालाग्निरुद्र उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्
२९.मैत्रेयि उपनिषद् = साम वेद, संन्यास उपनिषद्
३०.सुबाल उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
३१.क्षुरिक उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
३२.मान्त्रिक उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
३३.सर्व-सार उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
३४.निरालम्ब उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
३५.शुक-रहस्य उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
३६.वज्रसूचि उपनिषद् = साम वेद, सामान्य उपनिषद्
३७.तेजो-बिन्दु उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
३८.नाद-बिन्दु उपनिषद् = ऋग् वेद, योग उपनिषद्
३९.ध्यानबिन्दु उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
४०.ब्रह्मविद्या उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
४१.योगतत्त्व उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
४२.आत्मबोध उपनिषद् = ऋग् वेद, सामान्य उपनिषद्
४३.परिव्रात् उपनिषद् (नारदपरिव्राजक) = अथर्व वेद, संन्यास उपनिषद्
४४.त्रिषिखि उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, योग उपनिषद्
४५.सीता उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्
४६.योगचूडामणि उपनिषद् = साम वेद, योग उपनिषद्
४७.निर्वाण उपनिषद् = ऋग् वेद, संन्यास उपनिषद्
४८.मण्डलब्राह्मण उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, योग उपनिषद्
४९.दक्षिणामूर्ति उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्
५०.शरभ उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
५१.स्कन्द उपनिषद् (त्रिपाड्विभूटि) = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
५२.महानारायण उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
५३.अद्वयतारक उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
५४.रामरहस्य उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
५५.रामतापणि उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
५६.वासुदेव उपनिषद् = साम वेद, वैष्णव उपनिषद्
५७.मुद्गल उपनिषद् = ऋग् वेद, सामान्य उपनिषद्
५८.शाण्डिल्य उपनिषद् = अथर्व वेद, योग उपनिषद्
५९.पैंगल उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
६०.भिक्षुक उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
६१.महत् उपनिषद् = साम वेद, सामान्य उपनिषद्
६२.शारीरक उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
६३.योगशिखा उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
६४.तुरीयातीत उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
६५.संन्यास उपनिषद् = साम वेद, संन्यास उपनिषद्
६६.परमहंस-परिव्राजक उपनिषद् = अथर्व वेद, संन्यास उपनिषद्
६७.अक्षमालिक उपनिषद् = ऋग् वेद, शैव उपनिषद्
६८.अव्यक्त उपनिषद् = साम वेद, वैष्णव उपनिषद्
६९.एकाक्षर उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
७०.अन्नपूर्ण उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्
७१.सूर्य उपनिषद् = अथर्व वेद, सामान्य उपनिषद्
७२.अक्षि उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
७३.अध्यात्मा उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
७४.कुण्डिक उपनिषद् = साम वेद, संन्यास उपनिषद्
७५.सावित्रि उपनिषद् = साम वेद, सामान्य उपनिषद्
७६.आत्मा उपनिषद् = अथर्व वेद, सामान्य उपनिषद्
७७.पाशुपत उपनिषद् = अथर्व वेद, योग उपनिषद्
७८.परब्रह्म उपनिषद् = अथर्व वेद, संन्यास उपनिषद्
७९.अवधूत उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
८०.त्रिपुरातपनि उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्
८१.देवि उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्
८२.त्रिपुर उपनिषद् = ऋग् वेद, शाक्त उपनिषद्
८३.कठरुद्र उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
८४.भावन उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्
८५.रुद्र-हृदय उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्
८६.योग-कुण्डलिनि उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
८७.भस्म उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
८८.रुद्राक्ष उपनिषद् = साम वेद, शैव उपनिषद्
८९.गणपति उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
९०.दर्शन उपनिषद् = साम वेद, योग उपनिषद्
९१.तारसार उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, वैष्णव उपनिषद्
९२.महावाक्य उपनिषद् = अथर्व वेद, योग उपनिषद्
९३.पञ्च-ब्रह्म उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्
९४.प्राणाग्नि-होत्र उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
९५.गोपाल-तपणि उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
९६.कृष्ण उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
९७.याज्ञवल्क्य उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
९८.वराह उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
९९.शात्यायनि उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
१००.हयग्रीव उपनिषद् (१००) = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
१०१.दत्तात्रेय उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
१०२.गारुड उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
१०३.कलि-सन्तारण उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, वैष्णव उपनिषद्
१०४.जाबाल उपनिषद् (सामवेद) = साम वेद, शैव उपनिषद्
१०५.सौभाग्य उपनिषद् = ऋग् वेद, शाक्त उपनिषद्
१०६.सरस्वती-रहस्य उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शाक्त उपनिषद्
१०७.बह्वृच उपनिषद् = ऋग् वेद, शाक्त उपनिषद्
१०८.मुक्तिक उपनिषद् (१०८) = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य
1:~मानस में राम शब्द = 1443 बार आया है।
2:~मानस में सीता शब्द = 147 बार आया है।
3:~मानस में जानकी शब्द = 69 बार आया है।
4:~मानस में बैदेही शब्द = 51 बार आया है।
5:~मानस में बड़भागी शब्द = 58 बार आया है।
6:~मानस में कोटि शब्द = 125 बार आया है।
7:~मानस में एक बार शब्द = 18 बार आया है।
8:~मानस में मन्दिर शब्द = 35 बार आया है।
9:~मानस में मरम शब्द = 40 बार आया है।
10:~लंका में राम जी = 111 दिन रहे।
11:~लंका में सीताजी = 435 दिन रहीं।
12:~मानस में श्लोक संख्या = 27 है।
13:~मानस में चोपाई संख्या = 4608 है।
14:~मानस में दोहा संख्या = 1074 है।
15:~मानस में सोरठा संख्या = 207 है।
16:~मानस में छन्द संख्या = 86 है।
17:~सुग्रीव में बल था = 10000 हाथियों का।
18:~सीता रानी बनीं = 33वर्ष की उम्र में।
19:~मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र = 77 वर्ष थी।
20:~पुष्पक विमान की चाल = 400 मील/घण्टा थी।
21:~रामादल व रावण दल का युद्ध = 87 दिन चला।
22:~राम रावण युद्ध = 32 दिन चला।
23:~सेतु निर्माण = 5 दिन में हुआ।
24:~नलनील के पिता = विश्वकर्मा जी हैं।
25:~त्रिजटा के पिता = विभीषण हैं।
26:~विश्वामित्र राम को ले गए =10 दिन के लिए।
27:~राम ने रावण को सबसे पहले मारा था = 6 वर्ष की उम्र में।
28:~रावण को जिन्दा किया = सुखेन बेद ने नाभि में अमृत रखकर।
यह जानकारी दो महीने के परिश्रम केबाद आपके सम्मुख प्रस्तुत है ।
जय श्री राम
1. गौ माता जिस जगह खड़ी रहकर आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है । वहां वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं । 2. गौ माता में तैंतीस कोटी देवी देवताओं का वास है । 3. जिस जगह गौ माता खुशी से रभांने लगे उस देवी देवता पुष्प वर्षा करते हैं । 4. गौ माता के गले में घंटी जरूर बांधे ; गाय के गले में बंधी घंटी बजने से गौ आरती होती है । 5. जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है । 6. गौ माता के खुर्र में नागदेवता का वास होता है । जहां गौ माता विचरण करती है उस जगह सांप बिच्छू नहीं आते । 7. गौ माता के गोबर में लक्ष्मी जी का वास होता है । 8. गौ माता के मुत्र में गंगाजी का वास होता है । 9. गौ माता के गोबर से बने उपलों का रोजाना घर दूकान मंदिर परिसरों पर धुप करने से वातावरण शुद्ध होता है सकारात्मक ऊर्जा मिलती है । 10. गौ माता के एक आंख में सुर्य व दूसरी आंख में चन्द्र देव का वास होता है । 11. गाय इस धरती पर साक्षात देवता है । 12. गौ माता अन्नपूर्णा देवी है कामधेनु है । मनोकामना पूर्ण करने वाली है । 13. गौ माता के दुध मे सुवर्ण तत्व पाया जाता है जो रोगों की क्षमता को कम करता है । 14. गौ माता की पूंछ में हनुमानजी का वास होता है । किसी व्यक्ति को बुरी नजर हो जाये तो गौ माता की पूंछ से झाड़ा लगाने से नजर उतर जाती है । 15. गौ माता की पीठ पर एक उभरा हुआ कुबड़ होता है । उस कुबड़ में सूर्य केतु नाड़ी होती है । रोजाना सुबह आधा घंटा गौ माता की कुबड़ में हाथ फेरने से रोगों का नाश होता है । 16. गौ माता का दूध अमृत है । 17. गौ माता धर्म की धुरी है । गौ माता के बिना धर्म कि कल्पना नहीं की जा सकती । 18. गौ माता जगत जननी है । 19. गौ माता पृथ्वी का रूप है । 20. गौ माता सर्वो देवमयी सर्वोवेदमयी है । गौ माता के बिना देवों वेदों की पूजा अधुरी है । 21. एक गौ माता को चारा खिलाने से तैंतीस कोटी देवी देवताओं को भोग लग जाता है । 22. गौ माता से ही मनुष्यों के गौत्र की स्थापना हुई है । 23. गौ माता चौदह रत्नों में एक रत्न है । 24. गौ माता साक्षात् मां भवानी का रूप है । 25. गौ माता के पंचगव्य के बिना पूजा पाठ हवन सफल नहीं होते हैं । 26. गौ माता के दूध घी मख्खन दही गोबर गोमुत्र से बने पंचगव्य हजारों रोगों की दवा है । इसके सेवन से असाध्य रोग मिट जाते हैं । 27. गौ माता को घर पर रखकर सेवा करने वाला सुखी आध्यात्मिक जीवन जीता है । उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती । 28. तन मन धन से जो मनुष्य गौ सेवा करता है । वो वैतरणी गौ माता की पुछ पकड कर पार करता है। उन्हें गौ लोकधाम में वास मिलता है । 28. गौ माता के गोबर से ईंधन तैयार होता है । 29. गौ माता सभी देवी देवताओं मनुष्यों की आराध्य है; इष्ट देव है । 30. साकेत स्वर्ग इन्द्र लोक से भी उच्चा गौ लोक धाम है । 31. गौ माता के बिना संसार की रचना अधुरी है । 32. गौ माता में दिव्य शक्तियां होने से संसार का संतुलन बना रहता है । 33. गाय माता के गौवंशो से भूमि को जोत कर की गई खेती सर्वश्रेष्ट खेती होती है । 34. गौ माता जीवन भर दुध पिलाने वाली माता है । गौ माता को जननी से भी उच्चा दर्जा दिया गया है । 35. जहां गौ माता निवास करती है वह स्थान तीर्थ धाम बन जाता है । 36. गौ माता कि सेवा परिक्रमा करने से सभी तीर्थो के पुण्यों का लाभ मिलता है । 37. जिस व्यक्ति के भाग्य की रेखा सोई हुई हो तो वो व्यक्ति अपनी हथेली में गुड़ को रखकर गौ माता को जीभ से चटाये गौ माता की जीभ हथेली पर रखे गुड़ को चाटने से व्यक्ति की सोई हुई भाग्य रेखा खुल जाती है । 38. गौ माता के चारो चरणों के बीच से निकल कर परिक्रमा करने से इंसान भय मुक्त हो जाता है । 39. गाय माता आनंदपूर्वक सासें लेती है; छोडती है । वहां से नकारात्मक ऊर्जा भाग जाती है और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है जिससे वातावरण शुद्ध होता है । 40. गौ माता के गर्भ से ही महान विद्वान धर्म रक्षक गौ कर्ण जी महाराज पैदा हुए थे । 41. गौ माता की सेवा के लिए ही इस धरा पर देवी देवताओं ने अवतार लिये हैं । 42. जब गौ माता बछड़े को जन्म देती तब पहला दूध बांझ स्त्री को पिलाने से उनका बांझपन मिट जाता है । 43. स्वस्थ गौ माता का गौ मूत्र को रोजाना दो तोला सात पट कपड़े में छानकर सेवन करने से सारे रोग मिट जाते हैं । 44. गौ माता वात्सल्य भरी निगाहों से जिसे भी देखती है उनके ऊपर गौकृपा हो जाती है । 45. गाय इस संसार का प्राण है । 46. काली गाय की पूजा करने से नौ ग्रह शांत रहते हैं । जो ध्यानपूर्वक धर्म के साथ गौ पूजन करता है उनको शत्रु दोषों से छुटकारा मिलता है । 47. गाय धार्मिक ; आर्थिक ; सांस्कृतिक व अध्यात्मिक दृष्टि से सर्वगुण संपन्न है । 48. गाय एक चलता फिरता मंदिर है । हमारे सनातन धर्म में तैंतीस कोटि देवी देवता है । हम रोजाना तैंतीस कोटि देवी देवताओं के मंदिर जा कर उनके दर्शन नहीं कर सकते पर गौ माता के दर्शन से सभी देवी देवताओं के दर्शन हो जाते हैं । 49. कोई भी शुभ कार्य अटका हुआ हो बार बार प्रयत्न करने पर भी सफल नहीं हो रहा हो तो गौ माता के कान में कहिये रूका हुआ काम बन जायेगा । 50. जो व्यक्ति मोक्ष गौ लोक धाम चाहता हो उसे गौ व्रती बनना चाहिए ।