Friday, December 23, 2016

108 names of Lord Shani Dev

1 शनैश्चर
Sanaischara
2 शान्त
Shanta
3 सर्वाभीष्टप्रदायिन्
Sarvabhishta-pradayin
4 शरण्य
Sharanya
5 वरेण्य
Varenya
6 सर्वेश
Sarvesha
7 सौम्य
Saumya
8 सुरवन्द्य
Suravandhaya
9 सुरलोकविहारिण्
Suralokaviharin
10 सुखासनोपविष्ट
Sukhasanopavishta
11 सुन्दर
Sundara
12 घन
Ghana
13 घनरूप
Ghanarupa
14 घनाभरणधारिण्
Ghanabharanadharin
15 घनसारविलेप
Ghanasaravilepa
16 खद्योत
Khadyota
17 मन्द
Manda
18 मन्दचेष्ट
Mandacheshta
19 महनीयगुणात्मन्
Mahaniyagunatman
20 मर्त्यपावनपद
Martyapavanapada
21 महेश
Mahesha
22 छायापुत्र
Chayaputra
23 शर्व
Sharva
24 शततूणीरधारिण्
Shatatuniradharin
25 चरस्थिरस्वभाव
Charasthirasvabhava
26 अचञ्चल
Achanchala
27 नीलवर्ण
Nilavarna
28 नित्य
Nitya
29 नीलाञ्जननिभ
Nilanjananibha
30 नीलाम्बरविभूशण
Nilambaravibhushana
31 निश्चल
Nishchala
32 वेद्य
Vedya
33 विधिरूप
Vidhirupa
34 विरोधाधारभूमी
Virodhadharabhumi
35 भेदास्पदस्वभाव
Bhedaspadasvabhava
36 वज्रदेह
Vajradeha
37 वैराग्यद
Vairagyada
38 वीर
Vira
39 वीतरोगभय
Vitarogabhaya
40 विपत्परम्परेश
Vipatparamparesha
41 विश्ववन्द्य
Vishvavandya
42 गृध्नवाह
Gridhnavaha
43 गूढ
Gudha
44 कूर्माङ्ग
Kurmanga
45 कुरूपिण्
Kurupin
46 कुत्सित
Kutsita
47 गुणाढ्य
Gunadhya
48 गोचर
Gochara
49 अविद्यामूलनाश
Avidhyamulanasha
50 विद्याविद्यास्वरूपिण्
Vidhyaavidhyasvarupin
51 आयुष्यकारण
Ayushyakarana
52 आपदुद्धर्त्र
Apaduddhartr
53 विष्णुभक्त
Vishnubhakta
54 वशिन्
Vishin
55 विविधागमवेदिन्
Vividhagamavedin
56 विधिस्तुत्य
Vidhistutya
57 वन्द्य
Vandhya
58 विरूपाक्ष
Virupaksha
59 वरिष्ठ
Varishtha
60 गरिष्ठ
Garishtha
61 वज्राङ्कुशधर
Vajramkushaghara
62 वरदाभयहस्त
Varadabhayahasta
63 वामन
Vamana
64 ज्येष्ठापत्नीसमेत
Jyeshthapatnisameta
65 श्रेष्ठ
Shreshtha
66 मितभाषिण्
Mitabhashin
67 कष्टौघनाशकर्त्र
Kashtaughanashakartr
68 पुष्टिद
Pushtida
69 स्तुत्य
Stutya
70 स्तोत्रगम्य
Stotragamya
71 भक्तिवश्य
Bhaktivashya
72 भानु
Bhanu
73 भानुपुत्र
Bhanuputra
74 भव्य
Bhavya
75 पावन
Paavana
76 धनुर्मण्डलसंस्था
Dhanurmandalasamstha
77 धनदा
Dhanada
78 धनुष्मत्
Dhanushmat
79 तनुप्रकाशदेह
Tanuprakashadeha
80 तामस
Tamasa
81 अशेषजनवन्द्य
Asheshajanavandya
82 विशेषफलदायिन्
Visheshaphaladayin
83 वशीकृतजनेश
Vashikritajanesha
84 पशूनां पति
Pashunam Pati
85 खेचर
Khechara
86 खगेश
Khagesha
87 घननीलाम्बर
Ghananilambara
88 काठिन्यमानस
Kathinyamanasa
89 आर्यगणस्तुत्य
Aryaganastutya
90 नीलच्छत्र
Nilachchhatra
91 नित्य
Nitya
92 निर्गुण
Nirguna
93 गुणात्मन्
Gunatman
94 निरामय
Niramaya
95 निन्द्य
Nindya
96 वन्दनीय
Vandaniya
97 धीर
Dhira
98 दिव्यदेह
Divyadeha
99 दीनार्तिहरण
Dinartiharana
100 दैन्यनाशकराय
Dainyanashakara
101 आर्यजनगण्य
Aryajanaganya
102 क्रूर
Krura
103 क्रूरचेष्ट
Kruracheshta
104 कामक्रोधकर
Kamakrodhakara
105 कलत्रपुत्रशत्रुत्वकारण
Kalatraputra-shatrutvakarana
106 परिपोषितभक्त
Pariposhitabhakta
107 परभीतिहर
Parabhitihara
108 भक्तसंघमनोऽभीष्टफलद
Bhaktasanghamano-bhishtaphalada

108 names of Lord Ganesh

1 गजानन
Gajanana
2 गणाध्यक्ष
Ganadhyaksha
3 विघ्नराज
Vighnaraja
4 विनायक
Vinayaka
5 द्वैमातुर
Dvaimatura
6 द्विमुख
Dwimukha
7 प्रमुख
Pramukha
8 सुमुख
Sumukha
9 कृति
Kriti
10 सुप्रदीप
Supradipa
11 सुखनिधी
Sukhanidhi
12 सुराध्यक्ष
Suradhyaksha
13 सुरारिघ्न
Surarighna
14 महागणपति
Mahaganapati
15 मान्या
Manya
16 महाकाल
Mahakala
17 महाबला
Mahabala
18 हेरम्ब
Heramba
19 लम्बजठर
Lambajathara
20 ह्रस्वग्रीव
Haswagriva
21 महोदरा
Mahodara
22 मदोत्कट
Madotkata
23 महावीर
Mahavira
24 मन्त्रिणे
Mantrine
25 मङ्गल स्वरा
Mangala Swara
26 प्रमधा
Pramadha
27 प्रथम
Prathama
28 प्रज्ञा
Prajna
29 विघ्नकर्ता
Vighnakarta
30 विघ्नहर्ता
Vignaharta
31 विश्वनेत्र
Vishwanetra
32 विराट्पति
Viratpati
33 श्रीपति
Shripati
34 वाक्पति
Vakpati
35 शृङ्गारिण
Shringarin
36 अश्रितवत्सल
Ashritavatsala
37 शिवप्रिय
Shivapriya
38 शीघ्रकारिण
Shighrakarina
39 शाश्वत
Shashwata
40 बल
Bala
41 बलोत्थिताय
Balotthitaya
42 भवात्मजाय
Bhavatmajaya
43 पुराण पुरुष
Purana Purusha
44 पूष्णे
Pushne
45 पुष्करोत्षिप्त वारिणे
Pushkarotshipta Varine
46 अग्रगण्याय
Agraganyaya
47 अग्रपूज्याय
Agrapujyaya
48 अग्रगामिने
Agragamine
49 मन्त्रकृते
Mantrakrite
50 चामीकरप्रभाय
Chamikaraprabhaya
51 सर्वाय
Sarvaya
52 सर्वोपास्याय
Sarvopasyaya
53 सर्व कर्त्रे
Sarvakartre
54 सर्वनेत्रे
Sarvanetre
55 सर्वसिद्धिप्रदाय
Sarvasiddhipradaya
56 सिद्धये
Siddhaye
57 पञ्चहस्ताय
Panchahastaya
58 पार्वतीनन्दनाय
Parvatinadanaya
59 प्रभवे
Prabhave
60 कुमारगुरवे
Kumaragurave
61 अक्षोभ्याय
Akshobhyaya
62 कुञ्जरासुर भञ्जनाय
Kunjarasura Bhanjanaya
63 प्रमोदाय
Pramodaya
64 मोदकप्रियाय
Modakapriyaya
65 कान्तिमते
Kantimate
66 धृतिमते
Dhritimate
67 कामिने
Kamine
68 कपित्थपनसप्रियाय
Kapitthapanasapriyaya
69 ब्रह्मचारिणे
Brahmacharine
70 ब्रह्मरूपिणे
Brahmarupine
71 ब्रह्मविद्यादि दानभुवे
Brahmavidyadi Danabhuve
72 जिष्णवे
Jishnave
73 विष्णुप्रियाय
Vishnupriyaya
74 भक्त जीविताय
Bhakta Jivitaya
75 जितमन्मधाय
Jitamanmadhaya
76 ऐश्वर्यकारणाय
Aishwaryakaranaya
77 ज्यायसे
Jyayase
78 यक्षकिन्नेर सेविताय
Yaksha Kinnerasevitaya
79 गङ्गा सुताय
Ganga Sutaya
80 गणाधीशाय
Ganadhishaya
81 गम्भीर निनदाय
Gambhira Ninadaya
82 वटवे
Vatave
83 अभीष्टवरदाय
Abhishtavaradaya
84 ज्योतिषे
Jyotishe
85 भक्तनिधये
Bhktanidhaye
86 भावगम्याय
Bhavagamyaya
87 मङ्गलप्रदाय
Mangalapradaya
88 अव्यक्ताय
Avyaktaya
89 अप्राकृत पराक्रमाय
Aprakrita Parakramaya
90 सत्यधर्मिणे
Satyadharmine
91 सखये
Sakhaye
92 सरसाम्बुनिधये
Sarasambunidhaye
93 महेशाय
Maheshaya
94 दिव्याङ्गाय
Divyangaya
95 मणिकिङ्किणी मेखालाय
Manikinkini Mekhalaya
96 समस्त देवता मूर्तये
Samasta Devata Murtaye
97 सहिष्णवे
Sahishnave
98 सततोत्थिताय
Satatotthitaya
99 विघातकारिणे
Vighatakarine
100 विश्वग्दृशे
Vishwagdrishe
101 विश्वरक्षाकृते
Vishwarakshakrite
102 कल्याणगुरवे
Kalyanagurave
103 उन्मत्तवेषाय
Unmattaveshaya
104 अपराजिते
Aparajite
105 समस्त जगदाधाराय
Samsta Jagadadharaya
106 सर्वैश्वर्यप्रदाय
Sarwaishwaryapradaya
107 आक्रान्त चिद चित्प्रभवे
Akranta Chida Chitprabhave
108 श्री विघ्नेश्वराय
Shri Vighneshwaraya

Sunday, December 18, 2016

हिन्दू धर्म में वर्णित प्रमुख यज्ञ, किस राजा ने किए थे कौन से यज्ञ

हिंदू धर्म में यज्ञ की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। धर्म ग्रंथों में मनोकामना पूर्ति व किसी बुरी घटना को टालने के लिए यज्ञ करने के कई प्रसंग मिलते हैं। रामायण व महाभारत में ऐसे अनेक राजाओं का वर्णन मिलता है, जिन्होंने अनेक महान यज्ञ किए थे। देवताओं को प्रसन्न करने के लिए भी यज्ञ किए जाने की परंपरा है। आज हम आपको प्रमुख यज्ञ, उनसे जुड़ा विज्ञान आदि के बारे में बता रहे हैं। 

*धर्म ग्रंथों में यज्ञों के बारे में बताया गया है-🔥* 

 *ये हैं प्रमुख यज्ञ* 

 *पुत्रेष्टि यज्ञ*- 🔥 यह यज्ञ पुत्र प्राप्ति की कामना से किया जाता है। महाराज दशरथ ने यही किया था, परिणामस्वरूप श्रीराम सहित चार पुत्र जन्मे। राजा दशरथ का यह यज्ञ ऋषि ऋष्यशृंग ने संपन्न करवाया था।

 *अश्वमेघ यज्ञ*–🔥 इस यज्ञ का आयोजन चक्रवर्ती सम्राट बनने के उद्देश्य से किया जाता था। इस यज्ञ में एक राजा अपने घोड़े को अन्य राज्यों की सीमाओं में भेजता था। जिन राज्यों से वह घोड़ा बिना रोके आ जाता था, समझा जाता था कि उस राज्य के राजा ने आत्मसमर्पण कर दिया है और जो राजा उस घोड़े को पकड़ लेता था, उसे चक्रवर्ती सम्राट बनने की इच्छा रखने वाले राजा से युद्ध करना पड़ता था। धर्म ग्रंथों के अनुसार, जो सौ बार यह यज्ञ करता है, वह इंद्र का पद प्राप्त करता है।

 *राजसूय यज्ञ*–🔥 यह यज्ञ अपनी कीर्ति और राज्य की सीमाएं बढ़ाने के लिए किसी राजा द्वारा किया जाता था। इसके अंतर्गत कोई पराक्रमी राजा स्वयं या अपने अनुयायियों को अन्य राज्यों से कर (धन आदि) लेने भेजता था। जो आसानी से कर दे देता था, उससे मित्रतापूर्वक व्यवहार किया जाता था और जो कर नहीं देता था उसके साथ युद्ध कर उससे जबर्दस्ती कर वसूला जाता था।
 
 *विश्वजीत यज्ञ*–🔥 विश्व को जीतने के उद्देश्य से। सभी कामनाएं पूरी करता है। श्रीराम के पूर्वज महाराज रघु ने यह यज्ञ किया था।

 *सोमयज्ञ*– सभी के कल्याण की कामना से। आधुनिक युग में सर्वाधिक होते हैं।

 
 *पर्जन्य यज्ञ*–🔥 यह यज्ञ बारिश की कामना से किया जाता है। यह यज्ञ आज भी किया जाता है। इसके अलावा विष्णु यज्ञ, शतचंडी यज्ञ, रूद्र यज्ञ, गणेश यज्ञ आदि किए जाते हैं। ये सभी परंपरा में हैं।

 *क्यों किए जाते हैं यज्ञ?* 🔥
 
ग्रंथों में यज्ञ की महिमा खूब गाई गई है। वेद में भी यज्ञों की संपूर्ण जानकारी है। यज्ञ से भगवान प्रसन्न होते हैं, ऐसा धर्मशास्त्रों में कहा गया है। ब्रह्मा ने मनुष्य के साथ ही यज्ञ की भी रचना की और मनुष्य से कहा इस यज्ञ के द्वारा ही तुम्हारी उन्नति होगी। यज्ञ तुम्हारी हर इच्छा व आवश्यकताओं को पूरी करेगा। तुम यज्ञ से देवताओं को खुश करो, वे तुम्हारी उन्नति करेंगे।

 *यज्ञ से होने वाले लाभ* 🔥

धर्म ग्रंथों के अनुसार, यज्ञ के माध्यम से हर मनोकामना पूरी हो सकती है। धन प्राप्ति, कर्मों के प्रायश्चित, अनिष्ट को रोकने के लिए, दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के लिए, रोगों के निवारण के लिए यज्ञ करने का विधान है। देवताओं को प्रसन्न करे तथा धन-धान्य की अधिक उपज आदि के लिए भी यज्ञ किए जाते हैं। गायत्री उपासना में भी यज्ञ आवश्यक है। गायत्री को माता और यज्ञ को पिता कहा गया है। इन्हीं के संयोग से मनुष्य का आध्यात्मिक जन्म होता है।

          *इन्होंने किए थे महान यज्ञ* 🔥

*भगवान श्रीराम*–🔥 भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ किया था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, श्रीराम राजसूय यज्ञ करना चाहते थे, भरत भी इसके लिए सहमत थे, लेकिन लक्ष्मण ने श्रीराम से कहा कि अश्वमेध यज्ञ की महिमा कहीं अधिक है। लक्ष्मण के परामर्श पर ही श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ किया था।

 *धर्मराज युधिष्ठिर*–🔥 युधिष्ठिर ने राजसूय व अश्वमेध दोनों यज्ञ किए थे। जब पांडवों ने इंद्रप्रस्थ को अपनी राजधानी बनाया और वहां धर्म पूर्वक शासन करने लगे। उसके बाद युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया था। महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण के कहने पर अश्वमेध यज्ञ भी किया था।

*राजा श्वेतकि*–🔥 महाभारत के अनुसार, श्वेतकि एक पराक्रमी और प्रसिद्ध राजा थे। वह यज्ञ प्रेमी था, उसने अनेक बड़े-बड़े यज्ञ किए। वह इतने यज्ञ करते कि ब्राह्मण व पुरोहित भी कराते-कराते थक जाते और ऊब जाते थे। एक बार उन्होंने दुर्वासा ऋषि के द्वारा महान यज्ञ करवाया। पहले 12 और फिर 100 वर्ष के यज्ञ में दक्षिणा दे-देकर राजा ने ब्राह्मणों को तृप्त कर दिया। इस यज्ञ के फलस्वरूप ही राजा श्वेतकि को स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

 *राजा जनमेजय*–🔥 अर्जुन के पोते जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प यज्ञ किया था। जब जनमेजय को पता चला कि उसके पिता की मृत्यु तक्षक नाग द्वारा काटने से हुई तब उसने यह यज्ञ किया था। इस यज्ञ में अनेक सर्प जलकर भस्म हो गए थे। जनमेजय ने आस्तिक मुनि के कहने पर यह यज्ञ संपूर्ण नहीं किया था। (सम्पूर्ण कहानी यहां पढ़े: सांपो के सम्पूर्ण कुल विनाश के लिए जनमेजय ने किया था  ‘सर्प मेध यज्ञ’)

 *राजा ययाति*–🔥 महाभारत के अनुसार, राजा ययाति ने सौ राजसूय, सौ अश्वमेध, हजार पुंडरीक याग, सौ वाजपेय, हजार अतिरात्र याग तथा चातुर्मास्य और अग्निष्टोम आदि यज्ञ किए थे।

 *राजा सुहोत्र* - 🔥 महाभारत के अनुसार, राजा सुहोत्र ने एक हजार अश्वमेध, सौ राजसूय तथा बहुत-सी दक्षिणा वाले अनेक क्षत्रिय यज्ञ किए थे।

*ब्रह्मा ने की यज्ञ की रचना* 🔥

धर्म ग्रंथों के अनुसार, यज्ञ की रचना सर्वप्रथम परमपिता ब्रह्मा ने की। यज्ञ का संपूर्ण वर्णन वेदों में मिलता है। यज्ञ का दूसरा नाम अग्नि पूजा है। यज्ञ से देवताओं को प्रसन्न किया जा सकता है। साथ ही, मनचाहा फल भी प्राप्त किया जा सकता है।

 *ईश्वर का मुख है अग्नि* 🔥

धर्म ग्रंथों में अग्नि को ईश्वर का मुख माना गया है। इसमें जो कुछ खिलाया (आहुति) जाता है, वास्तव में ब्रह्मभोज है। यज्ञ के मुख में आहुति डालना, परमात्मा को भोजन कराना है। नि:संदेह यज्ञ में देवताओं की आवभगत होती है। 

                   *गीता में कहा है* 

*अन्नाद्भवंति भूतानि पर्जन्याद्न्नसम्भव:।*
*यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञ: कर्मसमद्भव:॥*

*अर्थात*- समस्त प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं और अन्न की उत्पत्ति वर्षा से होती है। वर्षा यज्ञ से होती है और वह यज्ञ कर्म से होता है।

 *यज्ञ से जुड़ा विज्ञान* 

यज्ञ एक महत्वपूर्ण विज्ञान है। इसमें जिन वृक्षों की समिधाएं उपयोग में लाई जाती हैं, उनमें विशेष प्रकार के गुण होते हैं। किस प्रयोग के लिए किस प्रकार की सामग्री डाली जाती है, इसका भी विज्ञान है। उन वस्तुओं के मिश्रण से एक विशेष गुण तैयार होता है, जो जलने पर वायुमंडल में विशिष्ट प्रभाव पैदा करता है। वेद मंत्रों के उच्चारण की शक्ति से उस प्रभाव में और अधिक वृद्धि होती है। जो व्यक्ति उस यज्ञ में शामिल होते हैं, उन पर तथा निकटवर्ती वायुमंडल पर उसका बड़ा प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिक अभी तक कृत्रिम वर्षा कराने में सफल नहीं हुए हैं, किंतु यज्ञ द्वारा वर्षा के प्रयोग बहुधा सफल होते हैं। व्यापक सुख-समृद्धि, वर्षा, आरोग्य, शांति के लिए बड़े यज्ञों की आवश्यकता पड़ती है, लेकिन छोटे हवन भी हमें लाभान्वित करते हैं।

*हवन और यज्ञ में क्या फर्क है, जानिए* 

हवन यज्ञ का छोटा रूप है। किसी भी पूजा अथवा जाप आदि के बाद अग्नि में दी जाने वाली आहुति की प्रक्रिया हवन के रूप में प्रचलित है। यज्ञ किसी खास उद्देश्य से देवता विशेष को दी जाने वाली आहूति है। इसमें देवता, आहुति, वेद मंत्र, ऋत्विक, दक्षिणा अनिवार्य रूप से होते हैं। हवन हिंदू धर्म में शुद्धीकरण का एक कर्मकांड है। कुंड में अग्नि के माध्यम से देवता के निकट हवि पहुंचाने की प्रक्रिया को हवन कहते हैं।

हवि, हव्य अथवा हविष्य वह पदार्थ है, जिनकी अग्नि में आहुति दी जाती हैं। हवन कुंड में अग्नि प्रज्ज्वलित करने के बाद इस पवित्र अग्नि में फल, शहद, घी, काष्ठ (लकड़ी) आदि पदार्थों की आहुति प्रमुख होती है। ऐसा माना जाता है कि यदि आपके आसपास किसी बुरी आत्मा इत्यादि का प्रभाव है तो हवन प्रक्रिया इससे आपको मुक्ति दिलाती है। शुभकामना, स्वास्थ्य एवं समृद्धि इत्यादि के लिए भी हवन किया जाता है। 

*जय श्री कृष्ण.*
*नमो नारायणा.....*